मैथिली लोकगीत : मोहि तेजि पिय मोर गेलाह विदेश
maithilii lokagiit : mohi teji piy mor gelaah videsh
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरहिणी कथन सखी से।
मोहि तेजि पिय मोर गेलाह विदेश।
कवन बिधि बितत सखी बारि बयस।।1।।
नयन सरोवर काजर नीर।
ढरकि खसल सखि धनिक सरीर।।2।।
सेज भेल परिमल फूल लेल बास।
कओन देस पिय मोर पड़ल उपास।।3।।
मेरे प्रिय मुझे छोड़कर विदेश चले गए। हे सखी! मेरी यह बारी उम्र किस प्रकार बीतेगी?।।1।।
मेरे नेत्र सरोवर हो गए हैं और काजल नीर बन गया है। हे सखी!
ये प्रेम के विरह में दरक रहे हैं।।2।।
मेरी सेज परिमल हो गई है और उसमें फूलों ने अपना वास बना लिया है। पता नहीं मेरे प्रिय किस देश में उपवास कर रहे होंगे।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 55)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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