मैथिली लोकगीत : कहु ने सगुन केर बतिया हे आली
maithili lokgit ha kahu ne sagun ker batiya he aali
रोचक तथ्य
संदर्भ—विरह।
कहु ने सगुन केर बतिया हे आली।।1।।
चारि मास बरखा रितु गत भेल,
बिरह दगध भेल छतिया हे आली।।2।।
आओन आओन पिया कहि गेल,
कहियो ने लिखै मोहि पतिया हे आली।।3।।
सुकबिदास कह तोहरे दरस बिन,
कोना खेवब दिन रतिया हे आली।।4।।
हे सखी! सगुन की बात करो।।1।।
वर्षा ऋतु के चार महीने बीत गए, विरह से मेरी छाती दग्ध हो गई।।2।।
हे सखी! मेरे प्रिय आने को कहकर गए थे, किंतु उन्होंने मुझे एक पाती तक नहीं लिखी।।3।।
सुकविदास का कहना है कि विरहिणी अपने पति का स्मरण कर कहती है कि मैं तुम्हारे बिना रातें कैसे काटूँगी?।।4।।
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