बुंदेली लोकगीत : घरवा ते निकरी बँझिनिया
bundeli lokgit ha gharwa te nikri banjhiniya
रोचक तथ्य
संदर्भ—वंध्या-व्यथा।
घरवा ते निकरी बँझिनिया, उरई तरी ठाढ़ी हो।
उरई ते निकरी नगिनिया, बँझिनि डँसि लेतिउ हो।
बँझिनि! हम नहीं डँसबै, बँझिनि होइ जाबइ हो।।1।।
हुअऊँ ते चली रे बँझिनिया, बृन्दाबन आई हो।
बृन्दाबन केरी बघिनिया, बँझिनि खाइ लेतिउ हो।
बँझिनि, कइसे क खाबइ, बँझिनि होइ जाबइ हो।।2।।
हुअऊँ ते चली रे बँझिनिया, गंगा तट पहुँची हो।
गंगा! एक लहरि मोहिं देतू, गुपुत होई जाइति हो।
जाहु तिरिया घर अपने त पुतवा खेलाइउ हो।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 324)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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