मैथिली लोकगीत : आरे आरे प्रेम चिड़इया झरोखा चढ़ि बोलले रे
maithilii lokagiit : aare aare prem chiD़iya jharokha chaDhi bolale re
रोचक तथ्य
संदर्भ—निःसंतान नारी की पीड़ा।
आरे आरे प्रेम चिड़इया झरोखा चढ़ि बोलले रे।
ललना, पिया मोरा गेल विदेस बिदेसे गर छाओल रे।।1।।
सासु मोरा निसिदिन मारए ननद गरियाबए रे।
ललना, गोतिनि कएल तरमेन बझिनया गरछाओल रे।।2।।
एक हाथे लेलि घइलिया दोसरे हाथ गेरुल रे।
ललना, बिरहल पनिया के गेलौं ऊपरे काग बोलल रे।।3।।
किए मोरा कगवा रे बबा अयता किए मोरा भइया अयता रे।
कगवा, कओने सगुनमा लए अएले त बोलिया बर सोहावन रे।।4।।
नये तोरा रानी हे बबा अयता नये तोरा भइया अयता रे।
ललना, होरिला सगुनमा लए अइली त बोलिया बर सोहावन रे।।5।।
एक निःसंतान स्त्री दुःखी होकर एक पक्षी से कहती है- हे झरोखे पर चढ़कर बोलते हुए प्यारे पक्षी! मेरे प्रियतम विदेश गए हुए हैं।।1।।
मेरी सास दिन-रात मुझे मारती है और ननद गाली देती है। मेरी समगोत्री स्त्री मुझे बाँझ कहकर ताना मारती है।।2।।
हे सखी! इसके बाद एक हाथ में घड़ा और दूसरे हाथ में गेरुला लेकर मैं विरहिणी पानी के लिए गई, तभी ऊपर कौआ बोलने लगा।।3।।
निः संतान ने कौए से पूछा—हे कौए! क्या मेरे पिताजी आ रहे हैं या कि
मेरे भाई आने वाले हैं? तुम कौन-सा अंदेश लाए हो, तुम्हारी बोली बड़ी अच्छी है।।4।।
कौए ने उत्तर दिया- हे सुंदरी! न तो तुम्हारे पिताजी आ रहे हैं और न ही भाई आते हैं। हाँ, मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि तुम्हारे पुत्र होगा। इसीलिए मेरी वाणी अच्छी है।।5।।
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