भोजपुरी लोकगीत : मन मैली के दाग राम कइसे छूटी
bhojapurii lokagiit : man mailii ke daag raam ka.ise chhuuTii
रोचक तथ्य
संदर्भ—पश्चात्ताप।
मन मैली के दाग राम कइसे छूटी।।टेक।।
छिछली गड़हिया, गुदरी पुरानी।
धोबिया बिसनिया, करेला नादानी, मन मैली0।।1।।
मइल से भरल हमार गुदरी पुरानी।
हमरा के पास में कउड़ी न कानी, मन मैली0।।2।।
मेरे मन का मैल रूपी दाग़ कैसे छूटेगा?
तालाब छोटा और उथला है, मेरा वस्त्र बहुत पुराना है। गुरु रूपी धोबी
शीघ्र रुष्ट होने वाला है, वह नादानी भी करता है।।1।।
मेरा पुराना वस्त्र मैल से भरा हुआ है, मेरे पास धुलाने के लिए कानी कौड़ी भी नहीं है अर्थात् कुछ भी नहीं है, जिसे देकर इसे धुला सकूँ अर्थात् मैंने कोई ऐसे भले काम भी नहीं किए, जिससे मन रूपी वस्त्र का कुछ तो मैल दूर हो सके।।2।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 133)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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