अवधी लोकगीत : उठौ भारत के किसनवा
awadhi lokgit ha uthau bharat ke kisanwa
रोचक तथ्य
संदर्भ—कृषकों को प्रेरणा।
उठौ भारत के किसनवा, हर कुदरिया लइके ना।।टेक।।
अन्न समस्या कठिन देस माँ, हे धरती के लाल,
पाक-चीन के झगड़ा से है, भारत देश बेहाल।
बिक्री होइगै पान छटँकिया।।हर कुदरिया०।।1।।
देस की हालत का ना भूलौ, पैदावार बढ़ाओ,
उन्नतिसील बीज बोय के, खाद नई डरवाओ।
अन्न से भरि जइहैं बखरिया।।हर कुदरिया०।।2।।
ताई तुंग धान ब्वाओ, लाइन से लगवाओ,
संकर मक्का, जोन्हरी बोय के, खेती खुब चमकाओ।
त्यागौ निदिया कै खुमरिया।।हर कुदरिया०।।3।।
अन्न देस माँ जेतनै होइहैं, वतनै ज्वान फुरतिहैं,
सीमा की वे रच्छा कइके, दुसमन दूरि भगइहैं।
रखिहैं देसवा कै वै पनिया।।हर कुदरिया०।।4।।
कोई व्यक्ति किसानों को प्रेरणा दे रहा है कि हे भारतीय किसानों! हल
और कुदाल लेकर उठो।।टेक।।
हे धरती पुत्र! देश में अन्न की कठिन समस्या है। पाकिस्तान और चीन से झगड़ा है, अतः भारत देश बेहाल है। यहाँ तक कि रुपये में अन्न पाव और छटाँक भर बिकने लगा है।।1।।
देश की दशा को मत भूलो, पैदावार बढ़ाओ। इसके लिए उन्नतिशील बीज बोकर नई खाद डलवाओ, जिससे अन्न से अन्नागार भर जाएँगे।।2।।
ताई-तुंग नामक धान बोओ, उन्हें पंक्तियों में रोपाओ, संकर मक्का और
जोंधरी बोकर खेती को ख़ूब बढाओ। नींद की ख़ुमारी त्याग दो।।3।।
देश में जितना ही अन्न होगा, उतनी ही हमारे सैनिको में फुर्ती होगी। वे
सीमा की रक्षा करके शत्रु को दूर भगाएँगे। वे देश का स्वाभिमान बनाए
रखेंगे।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 203)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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