अवधी लोकगीत : जा दिन मथुरा भई सनाथ
awadhi lokgit ha ja din mathura bhai sanath
रोचक तथ्य
संदर्भ—कृष्ण-जन्म।
पीढ़ाबंध—जा दिन मथुरा भई सनाथ,
पइदा भये बिधाता नाथ।
लइकै बलदाऊ का साथ,
बइठे बाबा नन्द के मक्कान।।1।।
भये बिधाता नाथ, हुए मथुरा के लोग अनन्द सुनौ।
देउकी के दुख दूरि भये, कटे बसुदेव के फन्द सुनौ।
जाय अटाइन गोकुल माँ, बसुदेव भये मदमन्द सुनौ।
लउटि कै वापिस घर माँ द्याखैं, परभू जी के छन्द सुनौ।
खड़े हैं पहरूदार केवाँरा आपुइ होइगै बन्द सुनौ।।2।।
आपुइ होइगे बन्द अब बसुदेव का आना-जाना था।
यादजोति का लिहे देउकी, करती बहुत बहाना था।
नगर भरे माँ हल्ला होइगा, कुँटुँब लोग सब जाना था।
लिहे हाथ में भाले, खड़े रहे पहरूदार हो।
अब तो सब सिपाही, मन माँ करि रहे बिचार हो।।3।।
अब दउरे सिपाही, राजा कंसा का बलावन।
तन का नहीं खबर, उइ तौ दउरे नंगे पावन।
पहुँचे कंसा द्वारे पै, लगे हैं गोहरावन।
खउफ खाय हाले राजा कंसा, बिसमय हिरदैं समानी राम।।4।।
हरबर-हरबर करि कै चले हैं, कंसा अत्याचारी राम।
घुसुर-मुसुर दइउ गरजत आवै, बरसन लागे हैं पानी राम।
कंसा कै हाल दंगल माँ कहत हैं, ‘राम बहादुर’ सैलानी राम।।5।।
अब तौ राजा कंसा, बसुदेव के ढिंग जाई।
अब गुस्सा बचन से देउकी का गोहराई।
लइकै कन्या देउकी जौ बाहेर का चली आई।
मानौ मेरी बात, लागत हौ सगे भाई।
कन्या दै दियो माँगन, पेट-पोछनी कहाई।।6।।
अतना सुनतै कंसा गवा है गुस्साई।
छोरि लिया कन्या वहु तो मारने का धाई।
और पैर पटकि सिले पै, दिहा है घुमाई।
छूटि गै कन्या हाथे से, अक्कासौ का जाई।
अकास ले जाय कै, बहु तो बोली सुनाई।
तुहैं सँघारने वाला गोकुल माँ परघटा जाई।
बइठे बाबा नन्द के मक्कान।।7।।
जिस दिन भगवान कृष्ण ने जन्म लिया, मथुरा नगरी सनाथ हो गई। बलदेव को साथ लेकर वे बाबा नन्द के घर विराजमान हुए।।1।।
मथुरा में आनंद छा गया, देवकी के दुःख दूर हुए और वसुदेव की हथकड़ी-बेड़ी कट गई। उन्होंने कृष्ण को गोकुल पहुँचा दिया। वे लौटकर काराग्रह आए तो देखा कि पहरेदार खड़े हैं और किवाड़ अपने आप बंद हो गए।।2।।
वसुदेव इधर से उधर आ-जा रहे थे। देवकी पुत्री को गोद में लेकर बहाना
कर रही थीं। नगर भर में शोर हो गया, कुटुंब के लोगों को जानकारी हो गई। पहरेदार हाथ में भाले लेकर खड़े थे। सब सिपाही मन में विचार कर रहे थे कि अब राजा कंस की सभा में चलना चाहिए।।3।।
कंस को बुलाने सिपाही दौड़े। उन्हें अपने तन की सुध-बुध नहीं थी, वे नंगे पैर दौड़ पड़े। वे कंस के द्वार पर पहुँचे और पुकारने लगे—महाराज कार्य हो गया देवकी के आठवीं संतान हो गई है। अब आप चलिए।।4।।
ख़ौफ़ खाकर राजा कंस हिले, उनके हृदय में भय समा गया। वह अत्याचारी हलबल-हलबल चला। हलकी-फुलकी वर्षा हो रही थी, बादल गरज रहे थे और पानी बरसने लगा था। रामबहादुर सैलानी दंगल में कंस का हाल कह रहे हैं।।5।।
राजा कंस ने वसुदेव के पास पहुँच कर क्रोधित हो पुकारा। देवकी कन्या को लेकर बाहर चली आईं। उन्होंने कंस से कहा, 'आप मेरे सगे भाई हैं, मेरी बात मानिए। मुझे माँगन स्वरूप कन्या दे दीजिए, यह पेट पोछनी कही जाएगी।।6।।
इतना सुनते ही कंस क्रोधित हो गया। उसने कन्या को छीन लिया और मारने चला। उसने पैर पकड़ कर सिल पर पटकने के लिए घुमाया। कन्या हाथ से छूट गई और आकाश में चली गई। वह वहाँ से बोली—तुझे मारने वाला गोकुल में जाकर प्रकट हुआ है और बाबा नंद के घर में है।।7।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 194)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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