अवधी लोकगीत : चारि पहर करौ काम, भजन करौ एक घरी
awadhi lokgit ha chari pahar karau kaam, bhajan karau ek ghari
रोचक तथ्य
संदर्भ—उद्बोधन।
चारि पहर करौ काम, भजन करौ एक घरी।।टेक।।
चारि पहर दिन धंधा माँ बीते, चारि पहर गयो सोइ।
एक घरी हरि नाम न लीन्ह्यो, अब मुकुती कहाँ से होइ।।1।।
कंठी बोलै काठ की भाई, का नित फेरौ मोहिं।
एक बिअर हिरदइँ से फेरौ, राम मिलावउँ तोहिं।।2।।
माया दिहेउ सूम का मालिक, ना खरचइ ना खाइ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, अब तो नरका क जाइ।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 221)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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