अवधी लोकगीत : अंगना बहारईं अंजनि माता तौ पीछे हनुमान टुनकइँ हो
avdhii lokagiit : a.ngna bahaara.ii.n a.njni maata tau piichhe hanumaan Tunak.i.n ho
रोचक तथ्य
संदर्भ—हनुमान जन्म।
अंगना बहारईं अंजनि माता तौ पीछे हनुमान टुनकइँ हो,
मइया! होइगै कलेउना कै जूनि, कलेउना हम खाबइ।।1।।
जाउ रे बेटा ओही असोक बन, बन बचे बिचरा हो,
बेटा! लाल-लाल फल खाया, हरेर मति छूया हो।।2।।
भोर भये भिनसरवा, सुरुज पह फाटी हो,
सखी! लील लिहिन हनुमान तौ दुनिया अँधेरी हो।।3।।
यह गति देखइँ देवतइ तौ बहुतइ अरज करइँ हो,
हनुमत! उगलि दिया भगवान तौ दुनिया अँधेरी।।4।।
जे एहि मंगल गावइ, गाइ के सुनावइ हो,
रामा! तरि बइकुंठइ जाइ, सुनइया फल पावै हो।।5।।
अंजनी माता आँगन बुहार रही थीं, उनके पीछे-पीछे हनुमान ठुनक रहे थे। उन्होंने कहा—माता जी! कलेवा का समय हो गया, अब मैं कलेवा करूँगा।।1।।
माता अंजनी ने उनसे कहा—हे पुत्र! उसी अशोक वन में जाओ और वन के बीच विचरण करो। वहाँ तुम लाल-लाल फल खाना, हरे मत छूना।।2।।
भोर होने पर जब सूर्य की पौ फटी तो हे सखी! हनुमान ने फल समझकर सूर्य को निगल लिया तो संसार में अँधेरा छा गया।।3।।
यह हाल देखकर देवता लोग बहुत प्रार्थना करने लगे कि हे हनुमान जी! भगवान् सूर्य को उगल दो, दुनिया भर में अँधेरा हो गया है।।4।।
गायिका अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! जो इस मंगल गीत को गाता और गाकर दूसरों को सुनाता है। वह भवसागर पार कर वैकुंठ लोक जाता है और सुननेवाला भी सुनने का फल पाता है।।5।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 149)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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