रे मन बिंद्रावन में रइए
re man bi.ndraavan me.n ra.i.e
रे मन बिंद्रावन में रइए!
किसन राधका कइए।
झाड़ूदार बने गाकुल के, खोरें साफ़ करइए॥
गोपन ब्रजवासन के घर पै, माँग के टुकड़ा खइए॥
करिए ना अभिमान जगत में, प्रभु सें नैकें रइए॥
चार भुजा वारे खों ‘ईसुर’, का दो भुजा निरइए॥
अरे मन! वृंदावन में रहो। 'कृष्ण-राधा' कहो। गोकुल में झाड़ूदार बन कर गलियाँ साफ़ करो। गोपों और ब्रज जनों के घरों से माँग-माँग कर टुकड़े खाओ। इस जगत में अभिमान न करो। प्रभु से विनीत बनकर रहो। ईसुरी! तू चार भुजा वाले प्रभु के सामने अपनी दो भुजाएँ क्या प्रदर्शित करता है?
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 26)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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