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साँसी प्रीत कर सें जानें

sansi preet kar sen janen

ईसुरी

ईसुरी

साँसी प्रीत कर सें जानें

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    साँसी प्रीत कर सें जानें!

    कएँ सें लबरी मानें!

    बतसें निगत जात हैं उत खों, हाल बे हाल भुलानें॥

    बातन कछू कछू कै आबै, रात बुद्द ठिकानें॥

    दावत देख दूर सें नकुआ, लासन घाईं बसाने॥

    ‘ईसुर’ कात कोए ना बिगरौ, हम बेतराँ नसाने॥

    प्रीति करके ही सच्चा अनुभव होता है। सुनी हुई बातें झूठी लगती हैं। हम जाना कहीं चाहते हैं और कहीं जा पहुँचते हैं। सब कुछ भूल बैठे। हाल-बेहाल हैं। कुछ कहना चाहते हैं और कुछ मुँह से निकलता है। बुद्धि स्थिर नहीं रहती। प्रेम-दीवाने को दूर से देख कर लोग नाक दबाने लगते हैं, जैसे उसमें लहसुन की दुर्गंध हो। ईसुरी कहता है—कोई प्रेम में बरबाद हो। मैं बुरी तरह मिट गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 246)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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