रइयौ मनमोहन सें बरकी
raiyau manmohan sen barki
रइयौ मनमोहन सें बरकी!
तुम नई भई अहिर की!
होत भोर जमुने न जइयौं, दै कें कोर कजर की॥
उनकौ राज उनह की रैयत, सिर पर बात जबर की॥
‘ईसुर’ कात तला में बस कें, सैये सान मगर की॥
कृष्ण से बच के रहना। तुम अहीर की नवयौवना सुन्दरी हो। सुबह−सुबह काजल लगाकर यमुना की ओर न जाना। उनका राज है और हम उनकी प्रजा हैं। सिर पर बलवान की बात आ पड़ी है। ईसुरी कहता है तालाब में बस कर मगर की मनमानी और अकड़ सहनी पड़ती है।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 42)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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