राधा लाड़ करें गिरधर पै
radha laD karen girdhar pai
राधा लाड़ करें गिरधर पै!
रुपें न अपने घर पै!
उरझे में सुरझें ना नैना, पी के पीताम्बर पै॥
कोए बात मौं फार सामने, कै नई सकत जबर पै॥
‘ईसुर’ जात मोह के बस में, सत्ती चड़ सरवर पै॥
राधा जी गिरधर कृष्ण से बहुत प्रेम करती हैं। वे अपने घर में नहीं टिकतीं। उनके नेत्र प्रियतम कृष्ण के पीतांबर से ऐसे उलझे हैं कि सुलझाए नहीं सुलझते। बड़े लोगों की बात मुँह खोल कर सबके सामने कोई नहीं कह सकता। अरे ईसुरी! मोह के फंदे में फँसी नारी प्रियतम पर सती हो जाती है।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 38)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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