ब्रज में राधा औ गिरधारी
braj mein radha au girdhari
ब्रज में राधा औ गिरधारी!
करें खुलासा यारी!
बिगरे जात नेंक का हटकें, उनके बाप मतारी॥
कै सुन लेव, हुए कैबे खाँ, कए की नैया गारी॥
अपनी अपनी जाँगन जुरकें, घैर करत नर नारी॥
‘ईसुर’ कभऊँ बजत नइ देखी, एक हात की तारी॥
राधा और कृष्ण ब्रज में खुलकर प्रेम करते हैं। दोनों बिगड़े जाते हैं। उन के माँ−बाप तनिक नहीं रोकते। उनको समझा−बुझा दो। बात कहने को तो रहेगी। कहने में कोई बुराई नहीं। कोई गाली तो है नहीं। नगर के लोग अपनी−अपनी जगह एकत्र होकर यही बातें करते है—निंदा करते हैं। ईसुरी ने कभी एक हाथ से ताली बजते नहीं देखी।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 46)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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