ऐसहँ कात पपीरा प्यासौ
aisahan kat papira pyasau
ऐसहँ कात पपीरा प्यासौ!
पिया कौ कैबौ आँसौ!
पानी की माँ कमती की खों, बहत जात चौमासौ॥
ऊ पानी कौ प्यासौ नइयाँ, प्रान पिया कौ साँसौ॥
कलम को चोला ख़ैर बनौ रय, बरे बसे ना बाँसौ॥
‘ईसुर’ इक दिन तोरए देखै, सब संसार तमासौ॥
प्यासा पपीहा ‘पिउ-पिउ’ कहता है। मुझे यह अखरता है। अरे इन दिनों पानी की किसी को क्या कमी? चौमासा बह रहा है। पर उसे इस पानी की प्यास नहीं उसके प्राण तो प्रिय के सच्चा प्रेम है। प्रेमी का शरीर स्वस्थ रहे। वह दूर हो या पास रहे। अरे ईसुरी, एक दिन संसार तेरा भी तमाशा देखेगा।
- पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 286)
- संपादक : घनश्याम कश्यप
- प्रकाशन : शब्दपीठ
- संस्करण : 1995
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