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ऐसौ भलौ न मानस चमकौ

aisau bhalau na manas chamkau

ईसुरी

ईसुरी

ऐसौ भलौ न मानस चमकौ

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    ऐसौ भलौ मानस चमकौ!

    ऐसौ धरम करम कौ!

    का कएँ गोपी ऊँसीं रै गईं, दै छाती में गमकौ॥

    बौ बेदरदी ब्रज कौ वासी, बिगरौ बिना करम कौ॥

    बाँद भसम पहुँचाई ‘ईसुर’ लेओरी खर्च खसम कौ॥

    ऐसा भला आदमी निकला कि शरमाया तक नहीं। वह ऐसे धर्म-कर्म वाला है! गोपियाँ क्या कहें? वे छाती-पीट कर रह गई। वह ब्रजवासी बड़ा निष्ठुर

    है। वह बिगड़ गया है। किसी करम का नहीं। देखो ईसुरी! उस कुटिल ने हमारे लिए भस्म बाँधकर भेजी है। सँभालो, परदेश गए पति का भेजा ख़र्च!

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 66)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ

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