Font by Mehr Nastaliq Web

सत्रिया और बिहू नृत्य

satriya aur bihu nritya

जया मेहता

जया मेहता

सत्रिया और बिहू नृत्य

जया मेहता

और अधिकजया मेहता

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

     

    भारत एक विशाल देश है। इसकी रंग-बिरंगी, सुंदर, प्राचीन और जीवन से भरी संस्कृति पूरी दुनिया में अनोखी है। भारत के प्रत्येक स्थान का नृत्य, संगीत, कला, खान-पान, भाषा, पहनावा, रहन-सहन के तरीक़े, सब कुछ इतना मोहक है कि पूरी दुनिया से लोग भारत की ओर खिंचे चले आते हैं। इस पाठ में भी एक परिवार एक दूसरे देश से भारत में आया है। आइए, पढ़ते हैं कि वे कौन और क्यों आए हैं? हैं, भारत में कहाँ आए हैं, और क्यों आए हैं?

    एंजेला लंदन के जाने-माने इलाक़े केंजिंग्टन में रहती थी। उसका स्कूल घर से दूर नहीं था। उसका कोई सगा भाई-बहन भी नहीं था। उसे जेम्स और कीरा नाम के दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद था। वे सब आपस में मिलकर कई काल्पनिक खेल खेला करते थे। उन्हें ऐसी कहानियों का पात्र बनने में मज़ा आता था, जिनमें दूर-दराज की दुनिया का ज़िक्र हो। एंजेला को हर उस कहानी से प्यार था, जिसमें उसे ताजमहल, एफिल टॉवर या कोलोजियम की यात्रा पर जाना हो। उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि जल्दी ही यात्राओं की उसकी ये कहानियाँ सच साबित होने वाली हैं।

    एंजेला की माँ एलेसेंड्रा एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता थीं। उन्हें लंदन की ब्रिटिश अकादमी से असम की नृत्य परंपरा पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए वित्तीय मदद दी गई थी। पेचीदा बात यह थी कि उनके पास इस काम को पूरा करने के लिए सिर्फ़ एक महीने का वक्त था। उन्होंने एंजेला के स्कूल से उसकी बसंत की छुट्टियों को एक हफ़्ते और बढ़ाने की अनुमति ले ली, जिससे एंजेला और उसके पिता ब्रायन भी उनके साथ जा सकें। एंजेला बहुत जल्दबाज़ी में बनाई गई इस यात्रा की योजना से हैरान थी, पर उसकी माँ समय से यह काम पूरा कर सकें, इसलिए वे सभी जल्दी ही तैयार हो गए।

    हिंदवी

    जब तक एंजेला कुछ समझ पाती, तब तक वह लंदन से नई दिल्ली होते हुए गुवाहाटी की उड़ान पर थी। यात्रा के दौरान माँ ने एंजेला को असम की ख़ूबसूरती के बारे में कुछ बातें बताई। असम, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में है, जिसे अपने वन्य-जीवन, रेशम और चाय के बागानों के लिए जाना जाता है। इसके साथ असम में नृत्य की भी एक समृद्ध परंपरा है। एलेसेंड्रा की डॉक्यूमेंट्री के केंद्र में असम के जनजीवन में नृत्य के महत्व को तलाशना था। वे जब यहाँ आ रहे थे तब अप्रैल का महीना चल रहा था। असम में यह नए साल का वक़्त होता है। बसंत के आने की ख़ुशी में वे सभी एक त्योहार मनाते हैं, जिसे ‘बिहू’ कहा जाता है। एंजेला उसी रात इसे देखने जाने वाली थी।

    गुवाहाटी के एक होटल में सामान्य होने के बाद वे उसी शाम पास के एक गाँव मलंग में गए। गाँव पहुँचने पर माँ ने एंजेला को बताया कि बिहू एक कृषि आधारित त्योहार है। भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा किसानों का है। असम में बिहू साल में तीन बार मनाया जाता है। सबसे पहले जब किसान बीज बोते हैं, फिर जब वे धान रोपते हैं और फिर तब, जब खेतों में अनाज तैयार हो जाता है।

    एंजेला कार से उतरी, वहाँ आस-पास उत्सव जैसा माहौल देखकर वह हतप्रभ थी। वहाँ एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे मंच बनाया गया था। वह जगह लोगों से भरी हुई थी। एंजेला ने एक पेड़ के नीचे एक साथ इतने लोगों को पहले कभी नहीं देखा था। वहाँ खुले आसमान के नीचे लोगों के बीच बैठकर उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह आश्चर्यजनक रूप से किसी टाइम-मशीन में आकर बैठ गई हो! या क्या वह उस वक़्त किसी सपनों की दुनिया में थी? वह मंत्रमुग्ध होकर वहाँ लड़के-लड़कियों को बसंत ऋतु के आगमन पर नृत्य करते देख रही थी। एंजेला ने इस बात पर ध्यान दिया कि लड़कों ने वाद्ययंत्र ले रखे हैं और लड़कियों ने लाल और बादामी रंग की गहरी डिज़ाइन वाली ख़ूबसूरत पोशाक पहन रखी है। वे सभी काफ़ी रंगीन और मस्त लग रहे थे। उनका हिलता-डुलता शरीर, हाथ-पैर की हलचल से समझ आ रहा था कि वे मौज़-मस्ती के नृत्य में खोए हुए हैं। उसकी इच्छा हुई कि वह भी अपने घर पर बसंत के आगमन पर ऐसे ही नृत्य करेगी।

    हिंदवी

    बिहू नृत्य और इसके उत्सव से अचंभित एंजेला और उसके परिवार ने इसके साथ-साथ लजीज पकवानों का पूरा आनंद लिया। जब वे वापस लौटे, तब माँ ने एंजेला से पूछा कि ‘उसे बिहू कैसा लगा?” एंजेला के मन में कई तरह के विचार चल रहे थे। उसे अच्छा लगा कि इस उत्सव और नृत्य दोनों को बिहू’ कहा जाता है। उसने माँ से पूछा कि क्या संगीत और नृत्य सिर्फ़ त्योहारों पर ही होते हैं। माँ ने बताया, “पूरी दुनिया की संस्कृतियों में लोग नृत्य और संगीत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। ख़ासतौर से भारत में बहुतायत ऐसा होता है। असम का बिहू नृत्य ग्रामीण जनजीवन के साथ-साथ फ़सल लगाने से लेकर बसंत के आगमन तक से जुड़ा हुआ है।”

    एंजेला की माँ अगले कुछ दिन डॉक्यूमेंट्री के तथ्य जुटाने और साक्षात्कार लेने में व्यस्त रहीं, एंजेला ने काफ़ी सारी बातों पर दूर से ही ग़ौर किया। उसने महसूस किया कि लंदन के जीवन से यहाँ सब कुछ कितना अलग था! उसे अपनी माँ पर गर्व हुआ। वे एक वैज्ञानिक-कहानीकार की तरह हैं, जो अपनी फ़िल्मों के द्वारा बहुत-सी चीज़ें एक साथ दिखाते हैं।

    हिंदवी

    अगले दिन वे उत्तरी असम की तरफ़ रवाना हुए, जहाँ सभी सत्रों’, अर्थात मठों की पीठ है। वे सभी एक सत्र के पास रहने के लिए जाने वाले थे और सत्रिया नृत्य का फ़िल्मांकन करने वाले थे। जब वे ‘दक्षिणापथ सत्र’ पहुँचे, तब वहाँ उनकी मुलाक़ात रीना सेन से हुई, जो असम की एक जानी-मानी लेखिका हैं। उस हफ़्ते उन लोगों को रीना सेन के घर पर ही रुकना था। रीना आंटी की एक बिटिया थी—अनु। अनु और एंजेला ने तुरंत एक-दूसरे की तरफ़ देखा। उन दोनों की ही उम्र दस साल थी, दोनों ने अँग्रेज़ी में बातचीत शुरू की। अनु ने एंजेला को कुछ असमिया शब्द भी सिखाए। एंजेला को अनु के खिलौने बहुत अच्छे लगे, जो थोड़े अलग तरह के थे। गुड़िया, लकड़ी के खिलौने और नारियल की जटा से बने घर। कितने अनोखे खिलौने! उसने लंदन में ऐसे खिलौने कभी नहीं देखे थे। अनु का पसंदीदा खिलौना लकड़ी का बना तीर-कमान था, जिसे लेकर उसे राम बनना बहुत अच्छा लग रहा था। एंजेला उसकी विरोधी बनी थी, शक्तिशाली रावण। वे एक साथ खेल रहे थे, उस कूद-फाँद और लड़ाई का कोई अंत नहीं था।

    हिंदवी

    एंजेला और अनु ने देखा कि एलेसेंड्रा ने वैष्णव मठ के सभागार में नृत्य कर रहे युवा साधुओं का फ़िल्मांकन किया। एंजेला आश्चर्य से सोच रही थी कि क्या सत्रिया नृत्य सिर्फ़ लड़कों और पुरुषों के लिए है? एंजेला और अनु सोच रहे थे कि काश वे भी इन युवा साधुओं की तरह गा सकते, नृत्य कर सकते और छद्म युद्ध लड़ सकते!

    माँ ने एंजेला को बताया कि बीसवीं शताब्दी के मध्य में कुछ साधु मठों से बाहर आकर पुरुषों और महिलाओं को सत्रिया नृत्य सिखाने लगे। शुरू में ऐसे साधुओं को मठों से निकाल दिया गया, लेकिन आधुनिक दौर में महिला सत्रिया कलाकारों के लिए मंच पर नृत्य करना आम बात हो गई है। उस रात माँ महिला सत्रिया नृत्यांगनाओं का फ़िल्मांकन करने वाली थीं।

    एंजेला बहुत उत्साहित थी, उसने रीना आंटी से आग्रह किया कि वे अनु को भी सत्रिया नृत्य में ‘महिला-नृत्य’ को देखने के लिए साथ आने दें। आंटी ने स्वीकृति दे दी, उस रात अनु और एंजेला सत्रिया नृत्य देखने गए, जिसमें भगवान विष्णु के दो द्वारपालों जय-विजय की कहानी थी। पर्दा उठा और एंजेला ने देखा कि सफ़ेद पगड़ीनुमा टोपी में दो महिलाएँ नृत्य और नाटक की शैली में कमाल का अभिनय कर रही हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ी उन दोनों ने देखा कि किस तरह जय और विजय ने कई बड़े ऋषियों को भगवान विष्णु से मिलने नहीं दिया, क्योंकि उस वक़्त भगवान विष्णु सो रहे थे। वे ऋषि नाराज़ हो गए। उन्होंने जय-विजय को असुर बनने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु की नींद जब टूटी, तब उन्हें अपने द्वारपालों को बचाने के लिए आना पड़ा। उन्होंने वचन दिया किया कि वे जय और विजय को मारकर उन्हें श्राप से बचा लेंगे। बाद में जय और विजय दुबारा भगवान विष्णु के द्वारपाल बने।

    एंजेला को यह कहानी नाटकीय और दिलचस्प लगी। सत्रिया महिला नृत्यांगनाओं ने जिस प्रकार की शक्ति, बल और आकर्षण प्रदर्शित किया, वह अद्भुत थाा! एंजेला को लगा कि उन महिला कलाकारों की प्रस्तुति सत्रिया नृत्य करने वाले पुरुष कलाकारों से भी बेहतर थी।

    इसके बाद के दिनों में अनु और एंजेला के ख़यालों में बस सत्रिया नृत्य ही घूम रहा था। उन दोनों ने स्वर्ग के द्वारपाल जय-विजय की तरह हथियार और तलवार चलाते हुए नृत्य किया। एलेसेंड्रा बच्चों की इस उत्सुकता को समझ गई और वे उन्हें सत्रिया कलाकारों के होने वाले साक्षात्कार में साथ लेकर गई।

    एंजेला और अनु बहुत ख़ुश थीं! उन नृत्यांगनाओं के नाम प्रिया और रीता थे। वे लड़कियों को सत्रिया और बिहू की कुछ ख़ूबसूरत मुद्राएँ और बारीकियाँ सिखा रही थीं। एंजेला अत्यधिक प्रसन्न थी। वापस लौटने के बाद भी वह चलने, खाना खाने और यहाँ तक कि खेलने के दौरान भी नृत्य करती रही। वापस लंदन जाने के बाद वह उन सभी रिकॉर्डिंग्स को देखती रही, जो उसकी माँ ने रिकॉर्ड की थी। पूरे उत्साह के साथ वह असम की समृद्ध नृत्य परंपरा को याद करती रही। रंग-बिरंगा सत्रिया और आनंदित करने वाला बिहू।

    माँ उसकी गहरी रुचि को समझ गई और उन्होंने पापा के साथ मिलकर एंजेला के लिए असमी नृत्य पर एक शानदार योजना तैयार की। एंजेला ने लंदन में अपनी कक्षा में, स्वयं किए गए नृत्य की वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ उसका प्रदर्शन किया। उसके सहपाठियों और शिक्षकों को यह बहुत पसंद आया। एंजेला इस बात से बहुत रोमांचित थी कि वह असम के ख़ूबसूरत नृत्यों की झलक उन सभी को दिखा पाई। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। माँ को भी हर बार ऐसे ही अच्छा लगता होगा, जब वे कोई फ़िल्म बनाती होंगी। अब एंजेला के पास अपने लिए, असम के नृत्यों-बिहू और सत्रिया के साथ अपना ख़ुद का मनोरंजन था।

    हिंदवी

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    जया मेहता

    जया मेहता

    स्रोत :
    • पुस्तक : मल्हार (पृष्ठ 75)
    • रचनाकार : जया मेहता
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free