और प्रसंस लगें न रुचि
aur prsans lagen na ruchi
और प्रसंस लगें न रुचि, कीनी अति मनुहारि।
जेसि मनोहर माधुरी, लगें प्रेम की गारि॥
दूसरों की की हुई प्रशंसा और अत्यधिक मनुहार भी उतनी मीठी नहीं लगती, जितनी मीठी प्रेम(पात्र) की गाली लगती है।
- पुस्तक : दयाराम सतसई (पृष्ठ 76)
- संपादक : अंबाशंकर वागर
- रचनाकार : दयाराम
- प्रकाशन : गुजराती रिसर्च इंस्टिट्यूट अहमदाबाद
- संस्करण : 1967
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