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और अरिस्या विरह दुख

aur arisya wirah dukh

दयाराम

दयाराम

और अरिस्या विरह दुख

दयाराम

और अधिकदयाराम

    और अरिस्या विरह दुख, हिलग अग बड़ दोई।

    सिखी धूम्र ताप बिन, जिमि कहु कदा होइ॥

    औरों (अपने प्रेमपात्र से प्रेम करनेवालों) के प्रति ईर्ष्या और प्रिय के विरह की पीड़ा-ये प्रेम के दो प्रधान अंग है। जैसे अग्नि धुआँ और ताप विहीन नहीं हो सकती (उसी प्रकार ईर्ष्या और विरह विहीन प्रेम भी दुर्लभ है)।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दयाराम सतसई (पृष्ठ 103)
    • संपादक : अंबाशंकर वागर
    • रचनाकार : दयाराम
    • प्रकाशन : गुजराती रिसर्च इंस्टिट्यूट अहमदाबाद
    • संस्करण : 1967

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