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पापी पिंजरा परौ पुरानो

paapii pi.njra parau puraano

परमलाल कुशवाहा ‘परम’

परमलाल कुशवाहा ‘परम’

पापी पिंजरा परौ पुरानो

परमलाल कुशवाहा ‘परम’

पापी पिंजरा परौ पुरानो, अब नईं लगत सुहानो।

कील किबरियाँ हो गई ढीलीं, सब ढाँचा ढिलयानो।

अब नई सुधर सकत काऊ सें ना इतनो कोउ स्यानो।

कड़न चाउत पंछी जा में से, मिटने परम ठिकानो॥

स्रोत :
  • पुस्तक : बुंदेलखंड की फागें (पृष्ठ 85)
  • संपादक : अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
  • रचनाकार : परमलाल कुशवाहा ‘परम’
  • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी
  • संस्करण : 2000

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