फाँस
रात बहुत नहीं हुई थी, पर पूस की अँधियारी गाँव के ऊपर लटक आई थी...निचली तह में जमे हुए धुएँ की नीली-नीली चादर, आज रामपुरा की हाट थी, आज के रोज़ इस गाँव और आस-पास के दूसरे गाँवो के लोग हफ़्ते भर की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए रामपुरा निकल जाते और फिर ब्यारी