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अड़िल्ल

चौपाई के समान सोलह मात्राओं का छंद है। जिसका सर्वाधिक प्रयोग भक्ति और युद्ध-वर्णन के प्रसंगों में किया गया है।

1699 -1764

किशनगढ़ (राजस्थान) नरेश। प्रेम, भक्ति और वैराग्य की साथ नखशिख की सरस रचनाओं के लिए ख्यात।

संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।

'टट्टी संप्रदाय' से संबद्ध। कविता में वैराग्य और प्रेम दोनों को एक साथ साधने के लिए स्मरणीय।

-1700

रीतिकालीन निर्गुण संतकवि और संत बुल्ला साहब के प्रधान शिष्य। वाणियों की मुख्य विषय-वस्तु अध्यात्म, प्रेम और शांति की कामना।

ब्रजभाषा के भक्त कवि। टट्टी संप्रदाय से संबद्ध।

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