जिस व्यक्ति की यहाँ कहानी कही जा रही है वह अपने इलाक़े का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं धनवान किसान था। उसका नाम था थोर्ड ओवरास। एक दिन वह गर्व से भरा हुआ पादरी के अध्ययन-कक्ष में पहुँचा।
मुझे एक लड़का हुआ है, उसने कहा, और बपतिस्मा के लिए मैं उसे लाना चाहता हूँ।
उसका नाम क्या रखोगे?
अपने पिता के नाम पर उसका नाम फिन रखना चाहता हूँ।
“और धर्मपिता?
उसने जो नाम लिया वे प्रत्यक्ष इलाक़े के सर्वश्रेष्ठ स्त्री-पुरुष थे।
“और कुछ?'' पादरी ने उसकी ओर देखते हुए पूछा। किसान थोड़ा हिचकिचाया।
मेरी बहुत इच्छा है कि बपतिस्मा स्वयँ उसके मन से हो। आख़िर में उसने कहा।
कब?
किसी कार्यदिवस के दिन।
“अगले शनिवार को दुपहर बारह बजे।
“और कुछ? पादरी ने पैसा ले लिया।
यह तीसरा अवसर है थोर्ड, जब तुम अपने बेटे के बाबत मेरे यहाँ आए।
उसके प्रति यह मेरी अंतिम ज़िम्मेदारी है?
थोर्ड ने कहा और अपनी नोटबुक समेटते हुए विदा लेकर बाहर निकल आया। और लोग भी उसके पीछे-पीछे हो लिए।
दो सप्ताह पश्चात् एक शांत एवं निश्छल दिन में पिता-पुत्र एक नाव पर विवाह की व्यवस्था के सिलसिले में स्टोरलिडेन के यहाँ जा रहे थे।
यह सुरक्षित नहीं है, पुत्र ने कहा और उस फट्टे को ठीक करने के लिए खड़ा हुआ जिस पर वह बैठा हुआ था।
इसी पल जिस फट्टे पर वह खड़ा हुआ था, वह फिसल गया। उसने सँभलने के लिए बाँहें फैलाईं लेकिन उसकी चीख़ निकल गई और वह नाव से नीचे गिर पड़ा।
“चप्पू पकड़ो, उछलते हुए पिता ने अपनी चप्पू फेंकी और ज़ोर से चिल्लाया।
लेकिन कई कोशिशों के बाद पुत्र का शरीर शिथिल होने लगा।
“रुको, पुत्र की ओर अपनी नाव ले जाते हुए पिता चिल्लाया। तभी पुत्र पीठ के बल लुढ़कने लगा। एकटक कुछ देर उसने पिता की ओर देखा और डूब गया।
थोर्ड के लिए यह अविश्वसनीय था। उसने नाव को रोका और जहाँ उसका पुत्र डूबा था, उस बिंदु पर अपनी निगाह टिकाई, मानो उसी बिंदु पर वह निश्चय ही ऊपर आएगा। वहाँ से कुछ बुलबुले उभरे, फिर कुछ और बुलबुले और अंत में एक बड़ा-सा बुलबुला सतह पर आया और आते ही फट गया और फिर झील पहले की तरह एक चिकने एवं चमकीले आईने में तब्दील हो गई।
तीन दिन और तीन रात लोगों ने देखा कि वह बिना खाए-पीए-सोए लगातार उसी बिंदु के चारों ओर चक्कर काट रहा है। अपने पुत्र के शरीर के लिए वह झील को मानो मथ रहा था। चौथे दिन सुबह उसे पुत्र का शव मिला। जिसे वह अपनी बाँहों में भरकर उस पहाड़ी पर ले आया, जहाँ उसका घर था।
इस घटना के एक वर्ष बाद जाड़े की एक गहराती शाम में पादरी को अपने दरवाज़े के बाहर बरामदे पर किसी के साँकल पीटने की आवाज़ सुनाई पड़ी। पादरी ने दरवाज़ा खोला; एक दुबला-पतला इंसान, जिसकी कमर झुकी हुई थी और बाल सफ़ेद थे, अंदर दाख़िल हुआ। उसे पहचानने के पहले पादरी ने थोड़ी देर तक उसे गहरी निगाह से देखा। यह थोर्ड था।
इतनी देर गए तुम टहलने निकले हो? पादरी ने कहा और उसके सामने मूर्तिवत् खड़ा रहा।
हाँ, सही में कुछ देर हो गई है। थोर्ड ने कहा और बैठ गया।
पादरी भी बैठ गया, मानो वह इंतज़ार ही कर रहा था। देर तक, काफ़ी देर तक शांति छाई रही। अंततः थोर्ड ने कहा—मेरे पास कुछ है जिसे मैं अपने पुत्र के नाम पर ग़रीबों में बाँटना चाहता हूँ।”
उसने उठकर मेज़ पर कुछ रुपए रखे और फिर आकर बैठ गया। पादरी ने उन रुपयों को गिना
यह तो अच्छी-ख़ासी रक़म है! उसने कहा।
नहीं, थोर्ड ने अपनी टोपी कुछ यूँ घुमाई, मानो अब वह जाने ही वाला हो।
तब पादरी उठ खड़ा हुआ और थोर्ड की ओर बढ़ते हुए उसके हाथ को पकड़ लिया, भगवान् करे कि यह बच्चा तुम्हारे लिए वरदान सिद्ध हो! उसकी आँखों में गंभीरता से देखते हुए कहा।
सोलह साल के बाद एक दिन थोर्ड एक बार फिर पादरी के अध्ययन-कक्ष में खड़ा था।
“आश्चर्य है थोर्ड कि तुम्हारी उम्र का कुछ पता नहीं चलता। पादरी ने उस व्यक्ति में कोई परिवर्तन न पाकर कहा।
क्योंकि मुझे कोई चिंता नहीं है। थोर्ड ने जवाब दिया।
इस पर पादरी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ पल बाद उससे पूछा, आज शाम क्या कर रहे हो?
कल मेरे बेटे का दृढ़ीकरण संस्कार है, उसी के लिए आया था।
वह एक होनहार लड़का है।
यह जाने बिना कि गिरजाघर में कल जब मेरा बेटा जाएगा तो उसका स्थान कहाँ होगा, मैं यजमानी देना नहीं चाहता।
उसका स्थान सर्वोपरि होगा।
“अच्छा, तो मैंने जान लिया, यह रहा पादरी का दस डॉलर।
“और क्या मैं आपके लिए कर सकता हूँ? पादरी ने थोर्ड पर निगाहें जमाते हुए पूछा।
“और कुछ नहीं।
थोर्ड बाहर निकल आया।
आठ वर्ष और गुज़र गए और तब एक दिन पादरी के अध्ययन-कक्ष के बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा। कई लोग उधर ही बढ़ रहे थे, जिसमें थोर्ड सबसे आगे था।
पादरी ने उसे देखा और पहचान लिया।
“आज तो तुम पूरी बारात के साथ आए हो, थोर्ड! उसने कहा।
मेरी बग़ल में जो यहाँ खड़ा है गुदमंड, उसकी पुत्री स्टोरलीन से मेरे पुत्र का विवाह होना निश्चित हुआ है; मैं आपसे वेंज प्रकाशित करने के लिए यहाँ निवेदन करने आया हूँ।
क्यों, वह तो इस पल्ली की सर्वाधिक धनी लड़की है!
हाँ, लोग ऐसा ही कहते हैं, एक हाथ से अपने बालों को पीछे ले जाते हुए थोर्ड ने जवाब दिया।
पादरी कुछ देर के लिए मानो गहन विचार में डूब गया। फिर बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए उसने अपनी पुस्तक में उनके नाम दर्ज कर लिए, जिसके नीचे थोर्ड एवं गुदमंड ने हस्ताक्षर किए थे। थोर्ड ने मेज़ पर तीन डॉलर रखे।
मेरे लिए एक डॉलर ही काफ़ी होगा। पादरी ने कहा।
मुझे यह अच्छी तरह पता है, लेकिन वह मेरा इकलौता बच्चा है और मैं उसका विवाह दिल खोलकर करना चाहता हूँ। कुछ रुककर थोर्ड फिर बोला, यह मेरी संपत्ति की आधी रक़म है, जो आज मैंने बेच डाली।
पादरी बहुत देर तक नीरव बैठा रहा। अंतत: बहुत कोमल स्वर में पूछा—
“थोर्ड, अब तुम क्या करने की सोचते हो?
कुछ ऐसा, जो बेहतर हो।
वे कुछ देर तक वहाँ बैठे रहे, झुकी आँखों के साथ थोर्ड और थोर्ड पर निगाह टिकाए पादरी। अंत में पादरी ने बहुत कोमल स्फुट स्वर में कहा—
मैं सोचता हूँ, तुम्हारा पुत्र अंततः तुम्हारे लिए एक सच्चा वरदान सिद्ध हुआ।
“हाँ, मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ, ऊपर देखते हुए थोर्ड ने कहा। आँसू की दो बड़ी-बड़ी बूँदें उसके गालों पर धीरे-धीरे रेंग रही थीं।
jis vyakti ki yahan kahani kahi ja rahi hai wo apne ilaqe ka sarvadhik prabhavashali evan dhanvan kisan tha. uska naam tha thorD ovraas. ek din wo garv se bhara hua padari ke adhyayan kaksh mein pahuncha.
mujhe ek laDka hua hai, usne kaha, aur baptisma ke liye main use lana chahta hoon.
uska naam kya rakhoge?
apne pita ke naam par uska naam phin rakhna chahta hoon.
“aur dharmapita?
usne jo naam liya ve pratyaksh ilaqe ke sarvashreshth stri purush the.
“aur kuchh? padari ne uski or dekhte hue puchha. kisan thoDa hichakichaya.
meri bahut ichchha hai ki baptisma svayan uske man se ho. akhir mein usne kaha.
kab?
kisi karyadivas ke din.
“agle shanivar ko duphar barah baje.
“aur kuchh? padari ne paisa le liya.
yah tisra avsar hai thorD, jab tum apne bete ke babat mere yahan aaye.
uske prati ye meri antim zimmedari hai?
thorD ne kaha aur apni notabuk samette hue vida lekar bahar nikal aaya. aur log bhi uske pichhe pichhe ho liye.
do saptah pashchat ek shaant evan nishchhal din mein pita putr ek naav par vivah ki vyavastha ke silsile mein storaliDen ke yahan ja rahe the.
yah surakshit nahin hai, putr ne kaha aur us phatte ko theek karne ke liye khaDa hua jis par wo baitha hua tha.
isi pal jis phatte par wo khaDa hua tha, wo phisal gaya. usne sanbhalane ke liye banhen phailain lekin uski cheekh nikal gai aur wo naav se niche gir paDa.
“chappu pakDo, uchhalte hue pita ne apni chappu phenki aur zor se chillaya.
lekin kai koshishon ke baad putr ka sharir shithil hone laga.
“ruko, putr ki or apni naav le jate hue pita chillaya. tabhi putr peeth ke bal luDhakne laga. ektak kuch der usne pita ki or dekha aur Doob gaya.
thorD ke liye ye avishvasniy tha. usne naav ko roka aur jahan uska putr Duba tha, us bindu par apni nigah tikai, mano usi bindu par wo nishchay hi uupar ayega. vahan se kuch bulbule ubhre, phir kuch aur bulbule aur ant mein ek baDa sa bulbula satah par aaya aur aate hi phat gaya aur phir jheel pahle ki tarah ek chikne evan chamkile aine mein tabdil ho gai.
teen din aur teen raat logon ne dekha ki wo bina khaye piye soe lagatar usi bindu ke charon or chakkar kaat raha hai. apne putr ke sharir ke liye wo jheel ko mano math raha tha. chauthe din subah use putr ka shav mila. jise wo apni banhon mein bharkar us pahaDi par le aaya, jahan uska ghar tha.
is ghatna ke ek varsh baad jaDe ki ek gahrati shaam mein padari ko apne darvaze ke bahar baramde par kisi ke sankal pitne ki avaz sunai paDi. padari ne darvaza khola; ek dubla patla insaan, jiski kamar jhuki hui thi aur baal safed the, andar dakhil hua. use pahchanne ke pahle padari ne thoDi der tak use gahri nigah se dekha. ye thorD tha.
itni der ge tum tahalne nikle ho? padari ne kaha aur uske samne murtivat khaDa raha.
haan, sahi mein kuch der ho gai hai. thorD ne kaha aur baith gaya.
padari bhi baith gaya, mano wo intzaar hi kar raha tha. der tak, kafi der tak shanti chhai rahi. antatः thorD ne kaha—
mere paas kuch hai jise main apne putr ke naam par gharibon mein bantna chahta hoon. ”
usne uthkar mez par kuch rupe rakhe aur phir aakar baith gaya. padari ne un rupyon ko gina
yah to achchhi khasi raqam hai! usne kaha.
nahin, thorD ne apni topi kuch yoon ghumai, mano ab wo jane hi vala ho.
tab padari uth khaDa hua aur thorD ki or baDhte hue uske haath ko pakaD liya, bhagvan kare ki ye bachcha tumhare liye vardan siddh ho! uski ankhon mein gambhirta se dekhte hue kaha.
solah saal ke baad ek din thorD ek baar phir padari ke adhyayan kaksh mein khaDa tha.
“ashcharya hai thorD ki tumhari umr ka kuch pata nahin chalta. padari ne us vyakti mein koi parivartan na pakar kaha.
kyonki mujhe koi chinta nahin hai. thorD ne javab diya.
is par padari ne kuch nahin kaha, lekin kuch pal baad usse puchha, aaj shaam kya kar rahe ho?
kal mere bete ka driDhikran sanskar hai, usi ke liye aaya tha.
vah ek honhar laDka hai.
yah jane bina ki girjaghar mein kal jab mera beta jayega to uska sthaan kahan hoga, main yajmani dena nahin chahta.
uska sthaan sarvopari hoga.
“achchha, to mainne jaan liya, ye raha padari ka das Daular.
“aur kya main aapke liye kar sakta hoon? padari ne thorD par nigahen jamate hue puchha.
“aur kuch nahin.
thorD bahar nikal aaya.
aath varsh aur guzar ge aur tab ek din padari ke adhyayan kaksh ke bahar kuch shor sunai paDa. kai log udhar hi baDh rahe the, jismen thorD sabse aage tha.
padari ne use dekha aur pahchan liya.
“aaj to tum puri barat ke saath aaye ho, thorD! usne kaha.
meri baghal mein jo yahan khaDa hai gudmanD, uski putri storlin se mere putr ka vivah hona nishchit hua hai; main aapse venj prakashit karne ke liye yahan nivedan karne aaya hoon.
kyon, wo to is palli ki sarvadhik dhani laDki hai!
haan, log aisa hi kahte hain, ek haath se apne balon ko pichhe le jate hue thorD ne javab diya.
padari kuch der ke liye mano gahan vichar mein Doob gaya. phir bina koi pratikriya vyakt kiye usne apni pustak mein unke naam darj kar liye, jiske niche thorD evan gudmanD ne hastakshar kiye the. thorD ne mez par teen Daular rakhe.
mere liye ek Daular hi kafi hoga. padari ne kaha.
mujhe ye achchhi tarah pata hai, lekin wo mera iklauta bachcha hai aur main uska vivah dil kholkar karna chahta hoon. kuch rukkar thorD phir bola, yah meri sampatti ki aadhi raqam hai, jo aaj mainne bech Dali.
padari bahut der tak nirav baitha raha. anttah bahut komal svar mein puchha—
“thorD, ab tum kya karne ki sochte ho?
kuchh aisa, jo behtar ho.
ve kuch der tak vahan baithe rahe, jhuki ankhon ke saath thorD aur thorD par nigah tikaye padari. ant mein padari ne bahut komal sphut svar mein kaha—
main sochta hoon, tumhara putr antatः tumhare liye ek sachcha vardan siddh hua.
“haan, main bhi aisa hi sochta hoon, uupar dekhte hue thorD ne kaha. ansu ki do baDi baDi bunden uske galon par dhire dhire reng rahi theen.
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स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 13-17)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : ब्यर्नख़्वेर्ने मार्टिनियस ब्यर्नसॉन
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।