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क़िस्सा अनजाने द्वीप का

qissa anjane dveep ka

अनुवाद : जितेंद्र भाटिया

जोसे सारामागो

जोसे सारामागो

क़िस्सा अनजाने द्वीप का

जोसे सारामागो

और अधिकजोसे सारामागो

    एक आदमी ने राजा का दरवाज़ा खटखटाया और कहा, ‘मुझे एक नाव चाहिए!’ राजा के महल में कई दरवाज़े थे। आदमी ने जिसे खटखटाया, वह याचिकाओं वाला दरवाज़ा था। राजा अपना सारा वक़्त तोहफ़ों वाले दरवाज़े पर अपने लिए आने वाले तोहफ़ों के बीच गुज़ारता था। इस व्यस्तता के चलते जब भी उसे याचिकाओं वाले दरवाज़े पर किसी के खटखटाने की आवाज़ सुनाई देती तो पहले वह उसे अनसुना करने की कोशिश करता, लेकिन जब खटखटाहट बंद होने की जगह कानों के पर्दों को फाड़ना शुरू करती और आस-पड़ोस के लोगों की नींद में पड़ता ख़लल बदनामी का कारण बनने लगता (कैसा राजा है यह, जो अपना दरवाज़ा तक नहीं खोलता, लोग झल्लाकर कहते), तब उस शोर से निजात पाने का कोई और रास्ता पाकर राजा अपने प्रथम सचिव को बुला भेजता कि जाकर पता लगाओ, फ़रियादी को क्या चाहिए? प्रथम सचिव फ़ौरन द्वितीय सचिव को आवाज़ देता, द्वितीय सचिव तृतीय सचिव को, तृतीय सचिव अपने प्रथम सहायक को आदेश देता, जो तुरंत द्वितीय सहायक पर हुक़्म चलाता और इस तरह पदानुक्रम से आदेश नीचे चलता हुआ बेचारी सफ़ाई-पोछे वाली औरत तक पहुँचता, जो बहरहाल किसी और को हुक़्म दे पाने की मजबूरी में अधखुले किवाड़ की दरार से झाँक कर फ़रियादी से पूछती कि उसे क्या चाहिए? फ़रियादी अपनी फ़रियाद का ब्यौरा देता और फिर दरवाज़े पर खड़ा होकर इंतज़ार करने लगता, ताकि उसकी फ़रियाद उसी रास्ते से वापस एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक होती हुई आख़िरकार राजा तक पहुँच सके। राजा चूँकि तोहफ़ों को स्वीकार करने में काफ़ी मसरूफ़ रहता था, इसलिए जवाब देने में उसे काफ़ी वक़्त लगता। लेकिन फिर भी अपनी प्रजा के सुख एवं कल्याण की उसे काफ़ी चिंता रहती और आख़िरकार इस मसले पर वह अपने प्रथम सचिव से लिखित राय माँगता। ज़ाहिर है कि प्रथम सचिव इस आदेश को द्वितीय सचिव के हवाले कर देता और द्वितीय सचिव तृतीय सचिव के, और इस तरह आदेश नीचे चलता हुआ एक बार फिर सफ़ाई-पोछे वाली औरत तक पहुँचता, जिसकी ‘हाँ’ या ‘ना’ इस बात पर निर्भर करती कि उस वक़्त वह किस तरह के मूड़ में है।

    लेकिन नाव माँगने वाले आदमी के साथ कुछ अलग ही वाकया हुआ। सफ़ाई-पोछे वाली औरत ने जब किवाड़ की दरार से झाँककर पूछा कि उसे क्या चाहिए, तो उसने औरों की तरह कोई ख़िताब या तमग़ा या रुपया-पैसा माँगने की जगह कहा, मैं राजा से बात करना चाहता हूँ। तुम अच्छी तरह जानते हो कि राजा नहीं सकता, क्योंकि वह तोहफ़ों वाले दरवाज़े पर व्यस्त है। औरत ने कहा, तो फिर राजा से जाकर कहो कि जब तक वह स्वयं पता लगाने नहीं आता कि मुझे क्या चाहिए, मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा, उस आदमी ने कहा, और यह कह कर वह दरवाज़े की दहलीज़ के आर-पार कंबल ओढ़कर लेट गया। अब हुआ यह कि उसकी इस हरकत से काफ़ी दिक़्क़त पेश आई, क्योंकि उन दरवाज़ों के संचालन से जुड़े प्रोटोकोल के अनुसार एक वक़्त में सिर्फ़ एक फ़रियादी की ही सुनवाई हो सकती थी, जिसका मतलब था कि जब तक एक फ़रियादी महल से आने वाले उत्तर की अपेक्षा कर रहा होता, तब तक कोई दूसरा वहाँ आकर अपनी माँगें नहीं रख सकता था। मोटे तौर पर देखा जाए तो इस प्रावधान से सबसे ज़्यादा फ़ायदा स्वयं राजा को ही होना चाहिए था, क्योंकि जितने कम लोग अपनी दुख भरी फ़रियादों से राजा को परेशान करते, उतना ही अधिक समय उसे तोहफ़ों को स्वीकार कर सहेजने-सम्भालने के लिए मिलता, लेकिन बारीकी से ग़ौर करें तो इसमें दरअसल राजा का नुकसान था, क्योंकि लोगों को जब फ़रियाद के सुने जाने में होने वाली बेहिसाब देरी का पता चलता, तो सार्वजनिक स्तर पर विरोध के स्वर उभरते और समाज में खलबली मचती, जिससे निश्चय ही राजा को मिलने वाले तोहफ़ों की संख्या में गिरावट आनी शुरू हो जाती। इस पेचीदा मसले के पक्ष और विपक्ष पर तीन दिनों तक सावधानी से विचार करने के बाद राजा स्वयं याचिकाओं वाले दरवाज़े जाकर पता लगाने गया कि सामान्य राजनयिक प्रावधानों को ठुकराने वाले उस ख़ुराफ़ाती शख़्स को आख़िर क्या चाहिए?

    दरवाज़ा खोल दो, राजा ने सफ़ाई-पोछे वाली औरत को आदेश दिया तो उसने पूछा कि पूरा खोलूँ या सिर्फ़ ज़रा-सा। राजा ज़रा देर के लिए हिचकिचाया, क्योंकि अपने खुले जिस्म को वह गलियों की मामूली हवा नहीं लगने देना चाहता था। लेकिन फिर उसे लगा कि किसी तीसरे व्यक्ति, ख़ासतौर पर सफ़ाई-पोछे वाली एक औरत की उपस्थिति में, प्रजा के एक सदस्य से दरवाज़े की दरार के जरिए बात करना, गोया कि वह उससे डर रहा हो, शाही सम्मान के खिलाफ़ होगा। फिर वह औरत पता नहीं किस-किस से क्या-क्या चुग़ली खाती फिरे।

    दरवाज़ा पूरा खोल दो, उसने आदेश दिया। नाव की माँग करने वाले आदमी ने जैसे ही भीतर से कुंडों के खोले जाने की आवाज़ सुनी, वह दहलीज़ से उठ खड़ा हुआ और कंबल को तह लगाकर इंतज़ार करने लगा। फ़रियाद के लिए अगला नंबर लगाने की फिराक़ में जो लोग आस-पास डोल रहे थे, वे भी मामले के जल्दी ही निपटाए जाने की उम्मीद में नज़दीक सिमट आए। चूँकि पूरे शासनकाल में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, राजा के इस अप्रत्याशित आगमन पर सिर्फ़ दूसरे प्रार्थियों, बल्कि आस-पास रहने वालों को भी काफ़ी आश्चर्य हुआ और वे सभी अपनी-अपनी खिड़कियों से बाहर झाँकने लगे। सिर्फ़ जो आदमी नाव माँगने आया था, वह उसी तरह शांत और सहज बना रहा। उसने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था कि चाहे तीन दिन क्यों लग जाएँ, लेकिन राजा के मन में उस आदमी का चेहरा देखने की उत्सुकता ज़रूर पैदा होगी, जिसने बिना किसी ख़ास कारण असाधारण हिम्मत दिखाते हुए सीधे उसी से बात करने की ज़िद ठानी थी।” उधर अपने ज़बर्दस्त कौतूहल और लोगों के इस मजमे के प्रति नाराज़गी के बीच फँसे राजा ने सारे बड़प्पन को दरकिनार करते हुए एक के बाद एक, दनादन तीन सवाल पूछ डाले। तुम्हें क्या चाहिए, सीधे बताते क्यों नहीं तुम्हें क्या चाहिए, तुम क्या सोचते हो, मेरे पास और कोई काम नहीं है? लेकिन उस आदमी ने सिर्फ़ पहले सवाल का उत्तर देते हुए कहा, मुझे एक नाव चाहिए, उत्तर को सुन कर राजा इस कदर भौंचक्का रह गया कि सफ़ाई-पोछे वाली औरत ने जल्दबाज़ी में उसे बैठने के लिए अपनी फूल की कुर्सी पेश की, जिस पर बैठ कर वह सिलाई-बुनाई का काम करती थी, क्योंकि महल में सफ़ाई के अलावा प्यादों के मोजों की मरम्मत जैसे फुटकर काम भी उसी के ज़िम्मे थे। राजा को कुछ अटपटा-सा महसूस हुआ, क्योंकि वह कुर्सी राजसिंहासन से काफ़ी नीची थी। उस पर अपने पैर ठीक से ज़माने की कोशिश में उसने पहले अपनी टांगें अंदर खींची, फिर दोनों पैर बाहर लटका दिए। इस बीच नाव की माँग करने वाला वह आदमी बहुत धैर्य के साथ अगले सवाल का इंतज़ार करता रहा और क्या हम जान सकते हैं कि तुम्हें यह नाव क्यों चाहिए? आख़िरकार सफ़ाई-पोछे वाली औरत की कुर्सी पर अपने आपको आरामदेह ढंग से जमा चुकने के बाद राजा ने पूछा, अनजाने द्वीप की ख़ोज पर निकलने के लिए, आदमी ने उत्तर दिया। कौन-सा अनजाना द्वीप, राजा ने अपनी हँसी रोकते हुए पूछा, गोया कि उसके सामने समुद्री यात्राओं से आक्रांत कोई नीम पागल इंसान खड़ा हो, जिससे सीधे उलझना ख़तरे से ख़ाली हो। अनजाना द्वीप, उस आदमी ने फिर कहा, क्या बकवास है, अब कहीं कोई अनजाना द्वीप नहीं है। यह आपसे किसने कहा महाराज कि अब कहीं कोई अनजाना द्वीप नहीं है? अब सारे द्वीप नक़्शों पर चुके हैं। नक़्शों पर जो द्वीप हैं, वे सब जाने-पहचाने हैं, तो फिर तुम कौन-से अनजाने द्वीप की ख़ोज में जाना चाहते हो। अगर यह मैं आपको बता दूँ तो फिर वह द्वीप अनजाना कहाँ रह जाएगा। क्या तुमने किसी को उसके बारे में बात करते सुना है, राजा ने इस बार कुछ गंभीर होकर पूछा, नहीं, किसी को भी नहीं...तो फिर तुम कैसे कह सकते हो कि वह है। सिर्फ़ इसलिए कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई अनजाना द्वीप हो, और तुम यहाँ मुझसे नाव माँगने आए हो। हाँ, मैं आपसे नाव माँगने आया हूँ, लेकिन तुम होते कौन हो मुझसे नाव माँगने वाले। और आप कौन होते हैं मुझे इंकार करने वाले। मैं इस राज्य का सम्राट हूँ और इस राज्य की सारी नावें मेरी हैं।

    ये जितनी आपकी हैं, उससे कहीं ज़्यादा आप उनके हैं। क्या मतलब, राजा ने कुछ घबरा कर पूछा। मेरा मतलब है कि उनके बिना आप कुछ भी नहीं हैं, जबकि ये नावें आपके बिना भी समंदर में उतर सकती हैं। हाँ, लेकिन मेरे आदेशों, मेरे मार्गदर्शकों और मेरे नाविकों के बग़ैर नहीं, लेकिन मैं आपके नाविक और मार्गदर्शक कहाँ माँग रहा हूँ? मुझे तो सिर्फ़ एक नाव चाहिए और वह अनजाना द्वीप। वह अगर तुम्हें मिल गया तो क्या वह मेरा होगा? लेकिन महाराज, आपकी चाह तो सिर्फ़ पहले से ख़ोजे जा चुके द्वीपों तक सीमित है। और अनजाने द्वीपों पर भी बशर्ते उन्हें ख़ोज निकाला जाए। लेकिन हो सकता है कि यह द्वीप अपने आपको ख़ोजा ही जाने दे। तब मैं तुम्हें नाव नहीं दूँगा। आप देंगे महाराज, आप ज़रूर देंगे। आत्मविश्वास और ठंडेपन से बोले गए इन शब्दों को सुनकर याचिकाओं के दरवाज़े पर खड़े दूसरे फ़रियादियों ने, जिनका धैर्य इस बातचीत की शुरूआत के बाद से ही जवाब देने लगा था, उस आदमी के पक्ष में हस्तक्षेप करने का निर्णय ले लिया। उनका यह निर्णय एकता की किसी भावना के तहत नहीं, बल्कि जल्दी-से-जल्दी उससे छुटकारा पाने की इच्छा से प्रेरित था। सो वे सब चिल्लाने लगे, उसे नाव दे दो। राजा ने साफ़-सफ़ाई वाली औरत से पहरेदारों को बुलवा कर सार्वजनिक शांति और अनुशासन बहाल करवाने के लिए मुँह खोला ही था कि सामने के घरों की खिड़कियों से झाँकते बाशिंदे भी उत्साह के साथ इस शोर में शामिल हो गए। उसे नाव दे दो, उसे नाव दे दो। जनादेश के इतने संगठित प्रदर्शन से आक्रांत राजा ने हिसाब लगाया कि इस बीच तोहफ़ों के दरवाज़े से उसके लिए क्या कुछ आकर नहीं लौट गया होगा। उसने हाथ हवा में उठाकर लोगों को ख़ामोश हो जाने का आदेश देते हुए कहा, ठीक है, मैं तुम्हें नाव दे रहा हूँ, लेकिन नाविक तुम्हें ख़ुद जुटाने होंगे, क्योंकि अपने सारे नाविक मुझे पहले से ख़ोजे जा चुके द्वीपों के लिए चाहिए। भीड़ की करतल ध्वनि के शोर में आदमी के धन्यवाद के शब्द डूबकर रह गए। लेकिन उसके हिलते हुए होठों से लगता था कि वह कह रहा है, आप फिक्र करें महाराज, मैं काम चला लूँगा, और फिर सभी ने राजा को कहते सुना, जाओ, बंदरगाह पर जाकर गोदी के प्रमुख से मिलो, उससे कहना कि मैंने तुम्हें भेजा है और उसे तुम्हें एक नाव देनी है। मेरा कार्ड साथ में ले जाओ। उस आदमी ने कार्ड हाथ में लेकर पढ़ा, जहाँ राजा के नाम के नीचे ‘राजा’ लिखा हुआ था। सफ़ाई-पोछे वाली औरत के कंधे पर कार्ड टिका कर राजा ने उस पर कुछ लिख भी दिया था। इस कार्ड के धारक को एक नाव दे देना। नाव का बहुत बड़ा होना ज़रूरी नहीं, लेकिन वह मज़बूत और समुद्र में चल सकने लायक नाव होनी चाहिए, ताकि अगर कुछ ग़लत हो जाए तो कम से कम मेरी अंतरात्मा मुझे कचोटे। आदमी ने एक बार फिर धन्यवाद देने के लिए अपना सिर उठाया, लेकिन राजा तब तक जा चुका था और अब सिर्फ़ सफ़ाई-पोछे वाली वह औरत ख़यालों में डूबी उसकी ओर देख रही थी। आदमी दरवाज़े से हटा तो उसके जाते ही सभी दूसरे फ़रियादियों में दरवाज़े तक पहुँचने के लिए धक्का-मुक्की शुरू हो गई। लेकिन दरवाज़ा तब तक बंद हो चुका था। लोगों ने सफ़ाई-पोछे वाली औरत को बुलाने के लिए दरवाज़ा बार-बार खटखटाया, लेकिन वह औरत वहाँ थी ही नहीं, वह तो बाल्टी और झाड़ू हाथ में लिए बाईं हाथ की ओर बने एक और दरवाज़े की ओर मुड़ गई थी, जो निर्णयों का दरवाज़ा था। इस दरवाज़े का इस्तेमाल कभी-कभार ही होता था, लेकिन जब होता था तो पक्के तौर पर होता था। साफ़-सफ़ाई वाली औरत ख़यालों में क्यों डूबी हुई थी, यह भी अब समझा जा सकता था। दरअसल उन्हीं कुछ क्षणों में उसने फैसला कर लिया था कि वह नाव लेने के लिए बंदरगाह की ओर जाते उस आदमी के पीछे जाएगी। उसने तय किया कि महलों में सफ़ाई करने और झाड़ू लगाने की ज़िंदगी बहुत हो चुकी, अब कुछ और करने का समय चुका था और उसकी असली रुचि तो जहाज़ों की सफ़ाई करने और झाड़ू लगाने में थी, जहाँ वैसे भी पानी की कोई कमी नहीं होने वाली थी, तो इस तरहे उस आदमी को अंदाज़ा भी नहीं होगा कि इधर उसने नाविकों की भरती शुरू भी नहीं की है और उधर पूरी नाव की साफ़-सफ़ाई की ज़िम्मेदारी निभा सकने वाला एक शख़्स ख़ुद उसके पीछे-पीछे चला रहा है। भाग्य हमारे साथ इसी तरह का मज़ाक करता है। हम भुनभुना कर सोचते हैं कि बस अब हो गया खेल ख़त्म। क़िस्सा तमाम, छोड़ो, और क़िस्मत हमारे ठीक पीछे खड़ी, हमारे कंधे को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा भी चुकी होती है...।

    काफ़ी दूर चलने के बाद वह आदमी बंदरगाह तक पहुँचा और उसने गोदी के प्रमुख से मिलने का आग्रह किया। उसके बाहर आने का इंतज़ार करते हुए वह सोचता रहा कि सामने बंधी नावों में से कौन-सी उसे मिल सकती है? राजा के विज़िटिंग कार्ड पर लिखी गई हिदायतों में कहा गया था कि नाव आकार में बहुत बड़ी नहीं होगी, जिसका मतलब था कि भाप के इंजन वाले स्टीमरों, मालवाहक जहाज़ों और युद्धपोतों को गिनती से बाहर रखा जा सकता था। लेकिन राजा ने यह भी कहा था कि नाव इतनी छोटी भी हो कि समुद्री हवाओं और लहरों की तेज़ी का मुक़ाबला कर सकें। नाव सुरक्षित और समुद्र में उतरने लायक होनी चाहिए। ये राजा के शब्द थे। इसका मतलब है कि छोटी नौकाओं और बजरों को छोड़ा जा सकता था, जो सुरक्षित होते हुए भी उन समुद्री यात्राओं के लिए अनुपयुक्त थे, जिन पर निकले बग़ैर अनजाने द्वीपों का पता नहीं लगाया जा सकता था। उस आदमी से कुछ ही फासले पर तेल के पीपों के पीछे छिपी सफ़ाई-पोंछे वाली वह औरत भी किनारे पर खड़ी नावों पर अपनी नज़रें दौड़ा रही थी। मुझे यह वाली पसंद है, उसने मन ही मन सोचा, हालाँकि उसकी राय की फ़िलहाल कोई क़ीमत नहीं थी, और अभी तो उसे नौकरी पर भी नहीं रखा गया था, लेकिन सबसे पहले यह जानना ज़रूरी था कि गोदी के प्रमुख की राय क्या है? प्रमुख ने बाहर आते ही सबसे पहले कार्ड को पढ़ कर उस आदमी को सिर से पाँव तक देखा और फिर सबसे आवश्यक वह सवाल पूछा, जिसे राजा पूछना भूल गया था। तुम्हें नौका सम्भालना आता है और क्या तुम्हारे पास इसे चलाने का लाइसेंस है? नहीं, मैं समुद्र में अपने-आप सीख जाऊँगा, उस आदमी ने कहा। मैं इसकी सलाह नहीं दूँगा, गोदी के प्रमुख ने कहा, मैं स्वयं समुद्री कप्तान हूँ लेकिन फिर भी मुझमें किसी पुरानी नाव में बैठ कर समुद्री यात्रा पर निकल पड़ने का साहस नहीं है। तो फिर मुझे ऐसी नाव दो जिस पर सवार होकर मैं यात्रा पर निकल सकूँ। ऐसी नाव जिसका मैं मान रख सकूँ और जो मेरा मान रख सके। नाविक होने पर भी तुम बिल्कुल नाविकों की-सी बातें करते हो। अगर मैं नाविकों की-सी बातें करता हूँ तो फिर मेरा नाविक बनना तय ही है। गोदी के प्रमुख ने फिर एक बार राजा के कार्ड को ध्यान से देखा और कहा, तुमने बताया नहीं कि तुम्हें नाव क्यों चाहिए? अनजाने द्वीप की ख़ोज पर निकलने के लिए, लेकिन अब कोई अनजाने द्वीप नहीं बचे हैं। राजा ने भी मुझसे यही कहा था। राजा को द्वीपों के बारे में यह जानकारी मैंने ही दी है। अब तो यह और भी अजीब बात है कि आप समंदर के आदमी होकर कहते हैं कि अब कोई अनजाने द्वीप नहीं बचे हैं, जबकि मैं धरती वाला होकर भी जानता हूँ कि जाने हुए द्वीप भी तब तक अनजाने रहते हैं, जब तक आप स्वयं उन पर क़दम रख लें, लेकिन, जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, तुम ऐसे द्वीप की तलाश में निकलना चाहते हो, जिस पर आज तक किसी ने भी क़दम रखा हो। हाँ, लेकिन यह तो वहाँ पहुँचने के बाद ही पता चलेगा। ठीक है, गोदी प्रमुख ने कहा, तुम्हें जिस तरह की नाव चाहिए, वह मैं तुम्हें दे रहा हूँ। कौन-सी वाली। बहुत तज़ुर्बे वाली है यह नाव, उन पुराने दिनों की यादगार, जब लोग अनजाने द्वीपों की ख़ोज पर जाया करते थे। कौन-सी वाली, बल्कि हो सकता है कि इसने कुछ अनजाने द्वीप ख़ोजे भी हों। कौन-सी है वह नाव, वह रही। सफ़ाई-पोंछे वाली औरत ने जैसे ही गोदी प्रमुख की उँगली के इशारे का अनुसरण किया। वह पीपों के पीछे से बाहर निकल कर चिल्लाने लगी, वही मेरी वाली नाव है, वही मेरी वाली नाव है। स्वामित्व के उसके इस अप्रत्याशित एवं सर्वथा नाज़ाएज दावे को नज़रअंदाज करते हुए कहा जा सकता था कि यही वह नाव थी, जिसे उस औरत ने भी पसंद किया था। यह तो पालदार जहाज़ जैसी दिखती है। आदमी ने कहा, हाँ, ऐसा कह सकते हैं, गोदी प्रमुख बोला, इसे पालदार जहाज़ जैसा ही बनाया गया था, इसमें थोड़े-बहुत फेरबदल किए गए। लेकिन फिर भी है यह पालदार जहाज़ ही।

    हाँ, इसने अपनी पुरानी शक्ल बरकरार रखी है और इसमें पाल और मस्तूल हैं। यही तो चाहिए अनजाने द्वीपों की ख़ोज पर निकलने के लिए, अपने-आपको और अधिक रोक पाने में असमर्थ सफ़ाई-पोंछे वाली औरत बोली, मेरे लिए तो बस यही नाव ठीक है। तुम कौन हो, आदमी ने पूछा। क्या तुम मुझे नहीं पहचानते। नहीं! मैं सफ़ाई वाली औरत हूँ। मैं समझा नहीं किसकी सफ़ाई, महल की, और किसकी, मैं वही औरत हूँ जिसने तुम्हारे लिए याचिकाओं वाला दरवाज़ा खोला था। तो फिर तुम यहाँ घूमने की बजाए महल की सफ़ाई और दरवाज़े खोलने का काम क्यों नहीं कर रही! क्योंकि एक तो मैं जिन दरवाज़ों को खोलना चाहती थी, वे पहले ही खोले जा चुके हैं और दूसरे अब से मैं सिर्फ़ नावों की सफ़ाई करूँगी। तो फिर तुम अनजाने द्वीप की तलाश में मेरे साथ चलना चाहती हो, हाँ, मैं निर्णयों वाले दरवाज़े से महल को छोड़ आई हूँ। ऐसा है तो फिर जाकर नाव को अंदर से देख लो, उसे साफ़ करने की भी ज़रूरत होगी, लेकिन समुद्री अबाबीलों से बचकर रहना। क्यों, तुम क्या मेरे साथ चलकर अपनी नाव को अंदर से नहीं देखोगे? तुमने तो कहा कि वह तुम्हारी नाव है। वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया, क्योंकि नाव मुझे पसंद आई थी। पसंद का इज़हार ही शायद सबसे सुंदर स्वामित्व है, और स्वामित्व शायद पसंद का सबसे बदसूरत इज़हार। गोदी प्रमुख ने इस बातचीत में दख़ल देते हुए कहा, मुझे इस जहाज़ के मालिक को चाबियाँ देनी हैं, तुम दोनों फैसला कर लो कि मालिक कौन है, मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता? क्या नावों की भी चाबियाँ होती हैं, आदमी ने पूछा। नहीं, घुसने के लिए नहीं, लेकिन भीतर आल्मारियाँ, लॉकर और कप्तान के खाते भी तो हैं। यह सब मैं इस औरत पर छोड़ता हूँ, आदमी ने कहा और वह नाविकों की तलाश में वहाँ से चल दिया।

    सफ़ाई-पोछे वाली औरत ने गोदी प्रमुख के दफ़्तर से चाबियाँ लीं और सीधे नाव पर चली गई, जहाँ दो चीज़ें उसके ख़ास काम आयीं, एक तो उसका शाही झाड़ू और दूसरे आदमी की समुद्री अबाबीलों से बचकर रहने की चेतावनी। नाव तक जाने के तख़्ते पर अभी उसने पैर रखा ही था कि अनगिनत अबाबीलें अपनी चोंचें खोले, ज़ोर से चिल्लाती हुई उस पर झपट पड़ीं, गोया कि वे उसे नोच कर ही खा जाएँगी, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उनका साबका किससे पड़ा है? सफ़ाई-पोछे वाली औरत ने अपनी बाल्टी नीचे रखी, चाबियों को छातियों के बीच घुसाया और तख़्ते पर संतुलन साध कर उसने झाड़ू को किसी तलवार की तरह घुमाना शुरू किया, जिससे देखते ही देखते पक्षियों को वह आक्रामक जत्था तितर-बितर हो गया। अबाबीलों के ग़ुस्से की वजह उसे नाव तक पहुँचने पर पता चली, जब उसने पाया कि वहाँ हर जगह अबाबीलों के घोंसले थे। कुछ ख़ाली, अंडों समेत और कुछ जिनमें बच्चे चोंचें फैलाए खाने का इंतज़ार कर रहे थे। यह सब तो ठीक है, लेकिन तुम्हें यह जगह ख़ाली करनी पड़ेगी, क्योंकि अनजाने द्वीप की ख़ोज में निकलने वाला जहाज़ मुर्ग़ियों के दड़बे जैसा नहीं दिख सकता, औरत ने कहा। ख़ाली घोंसलों को समंदर में फेंकने के बाद उसने बाक़ी को फ़िलहाल वहीं रहने दिया और आस्तीनें चढ़ाकर वह जहाज़ की सफ़ाई में जुट गई। वह कठिन काम जब ख़त्म हुआ तो उसने पालों के बक्से खोलकर उनका निरीक्षण किया, ताकि पता चल सके कि इतने वक़्त तक तेज़ समुद्री हवाओं के खिंचाव को झेले बग़ैर उनकी सिलाई किस हालत में हैं? ये पाल नाव की माँसपेशियों की तरह होते हैं, अगर इनका नियमित इस्तेमाल हो तो ये ढीले पड़ कर लटक जाते हैं और पालों की सिलाई उनके पुट्ठों की तरह, सफ़ाई वाली औरत ने अपने समुद्री ज्ञान में होते इज़ाफ़े पर ख़ुश होते हुए सोचा। कुछ सिलाइयाँ खुल गई थीं। इन पर उसने सावधानी से निशान लगाया, क्योंकि पिछले ही दिन तक प्यादों के मोजों की मरम्मत के लिए इस्तेमाल होने वाला सुई-धागा इस काम के लिए काफ़ी नहीं था। उसने पाया कि बाक़ी सारे बक्से ख़ाली हैं, बारूद का बक्सा भी ख़ाली था, लेकिन इसमें परेशानी की कोई बात नहीं थी, क्योंकि अनजाने द्वीप की ख़ोज पर निकलने के लिए युद्ध जैसी तैयारी की कोई ज़रूरत नहीं थी। हाँ, उसे इस बात से ज़रूर चिंता हुई कि खाने के बक्सों में अन्न या भोजन का सामान नहीं था। महल में उसे रूखा-सूखा ही नसीब होता था, इसलिए उसे अपनी फ़िक्र नहीं थी। लेकिन उस आदमी का वह क्या करेगी, जो सूरज ढलने के बाद अब किसी भी क्षण लौटेगा और बाक़ी पुरुषों की तरह लौटते ही जो भूख के मारे यूँ शोर मचाने लगेगा, जैसे पूरी दुनिया में सिर्फ़ उसे ही अपना पेट भरने की ज़रूरत हो और अगर अपने साथ वह चन्द भूखे पेट नाविकों को भी ले आया, तब तो और भी मुसीबत हो जाएगी। लेकिन उसकी चिंताएँ अनावश्यक निकलीं। सूरज अभी समंदर में डूबा ही था कि वह आदमी खाड़ी के दूसरी ओर से आता दिखाई दिया। उसके हाथ में खाने का समान था, और वह अकेला, हतोत्साहित-सा चला रहा था। सफ़ाई-पोछे वाली औरत उसके स्वागत के लिए जहाज़ के तख़्ते तक चली गई, लेकिन इससे पहले कि वह पूछ सकती कि उसका दिन कैसा गुज़रा, उसने कहा कि घबराओ मत, मैं अपने और तुम्हारे लिए काफ़ी खाना लाया हूँ और नाविक, उसने पूछा। देख तो रही हो, कोई नहीं आया। लेकिन कुछ ने क्या बाद में आने का वादा भी नहीं किया, औरत ने पूछा। उन्होंने कहा कि अब कहीं कोई अनजाने द्वीप नहीं बचे हैं और अगर बचे भी हों तो वे अपने घरों की सुविधा या बड़े यात्री जहाज़ों का आराम छोड़ कर काले समंदर वाले पुराने दिनों की तरह किसी असंभव समुद्री यात्रा पर चलने के लिए तैयार नहीं हैं और तुमने उनसे क्या कहा। मैंने कहा कि समंदर तो हमेशा काला ही होता है और तुमने उन्हें अनजाने द्वीप के बारे में नहीं बताया। जब मुझे ख़ुद ही नहीं मालूम कि वह अनजाना द्वीप कहाँ है तो मैं उसके बारे में उन्हें कैसे बताता? लेकिन तुम्हें तो यक़ीन है कि वह द्वीप है। हाँ, उतना ही जितना कि मुझे इस समुद्र के काले होने पर यक़ीन है। लेकिन इस वक़्त, जब पानी हरा है और ऊपर का आसमान सुर्ख, मुझे तो यह उतना काला नहीं दिखता। यह सिर्फ़ छलावा है, वैसे ही जैसे कभी-कभी हमें द्वीप पानी की सतह के ऊपर तैरते हुए से लगते हैं। लेकिन नाविकों के बग़ैर तुम काम कैसे चलाओगे, पता नहीं? हम लोग यहीं रह सकते हैं, मुझे तो बंदरगाह पर आने वाली नावों की सफ़ाई का काम मिल जाएगा। मगर तुम, मगर मैं, तुम्हारे पास कोई हुनर, कोई योग्यता या जैसा आजकल कहते हैं, कोई कारोबार तो होना चाहिए। वह मेरे पास था, अब भी है और आगे भी होगा, लेकिन मैं अनजाने द्वीप को ढूँढ़ना चाहता हूँ और उस द्वीप पर पहुँच कर जानना चाहता हूँ कि मैं कौन हूँ। क्यों, तुम जानते नहीं क्यों? जब तक हम अपने से बाहर निकलें, हमें पता नहीं चल सकता कि हम कौन हैं। महल में जब राजा के दार्शनिक के पास कोई काम नहीं होता था तो वह मेरे पास बैठ कर मुझे प्यादों के मोजों की मरम्मत करते हुए देखता था और कहता था कि हर आदमी एक द्वीप होता है, लेकिन मैं ठहरी औरत, लिहाजा मुझे लगता कि उसकी बात से मेरा कोई संबंध नहीं है, मगर तुम क्या सोचते हो यही कि द्वीप को देखने के लिए द्वीप से बाहर आना होगा, यानी अपने आप से आजाद हुए बग़ैर हम अपने आपको नहीं देख सकते। तुम्हारा मतलब है अपने आपसे छुटकारा पाए बग़ैर। नहीं, यह वही बात नहीं हुई। आसमान की सुर्खी अब धीरे-धीरे मिटती जा रही थी और पानी अचानक बैंजनी रंग का दिखाई देने लगा था। अब सफ़ाई वाली औरत को भी यक़ीन हो चला था कि समंदर का पानी सचमुच काला होता है। आदमी ने कहा, चलो फलसफे बघारने का काम राजा के दार्शनिक पर छोड़ दें, क्योंकि उसे इसी काम के पैसे मिलते हैं, और हम लोग चल कर खाना खाएँ, लेकिन औरत नहीं मानी। पहले तुम नाव को अंदर से देख लो, तुमने सिर्फ़ इसे बाहर से ही देखा है। तुम्हें कैसी लगी यह भीतर से? पालों की सिलाई कई जगह से खुल चुकी है, उसकी मरम्मत करनी होगी। तुमने इसके पेंदे तक जाकर देखा, क्या वहाँ काफ़ी पानी है? हाँ थोड़ा-सा है, लेकिन उतना पानी तो नाव के लिए अच्छा होता है। तुम्हें यह बात कैसे पता चली। बस, ऐसे ही, लेकिन कैसे? वैसे ही जैसे तुमने गोदी के प्रमुख से कहा कि तुम समंदर में नाव चलाना सीख जाओगे।

    लेकिन अभी हम समंदर में कहाँ हैं, समंदर सही, पानी में तो हैं। मेरा विश्वास था कि समुद्री यात्रा में दो ही सच्चे गुरू होते हैं, एक समंदर और दूसरी नाव। और आसमान, तुम आसमान को भूल रहे हो। हाँ-हाँ, आसमान और हवाएँ, और बादल, और आसमान, हाँ, आसमान!

    उन्हें पूरी नाव का मुआयना करने में पंद्रह मिनट से भी कम लगे। यह बहुत सुंदर है! आदमी ने कहा, लेकिन नाविक मिले तो मुझे राजा के पास जाकर कहना पड़ेगा कि मुझे अब नाव नहीं चाहिए। कमाल है, तुम तो पहली बाधा पर ही हार मान बैठे। पहली बाधा तो तब आई थी, जब मुझे तीन दिन तक राजा के आने का इंतज़ार करना पड़ा था, तब मैंने हार कहाँ मानी थी? अगर नाविक हमारे साथ आने के लिए राज़ी हुए तो हमें अकेले ही काम चलाना होगा। तुम्हारा दिमाग़ तो सही है, दो लोग अकेले इतने बड़े जहाज़ को कैसे सम्भालेंगे, मुझे तो सारा समय डैक का नियंत्रण करते रहना होगा और तुम...मैं कैसे समझाऊँ...यह सरासर पागलपन होगा। चलो बाद में देखेंगे, अभी तो चलकर खाना खाएँ...वे ऊपर डेक पर गए, जहाँ आदमी अब भी औरत के पागलपन पर अपना विरोध जताता रहा। वहाँ सफ़ाई वाली औरत ने आदमी द्वारा लाया खाने का सामान खोला। डबलरोटी, बकरी के दूध का पनीर, जैतून और शराब की एक बोतल। चाँद समंदर से एक हाथ ऊपर निकल आया था और मस्तूल से बनती परछाइयाँ उनके क़दमों पर गिरी थीं। हमारा जहाज़ बहुत सुंदर है, औरत ने कहा और फिर अपने-आपको सुधारा, मेरा मतलब है तुम्हारा जहाज़। मुझे नहीं लगता कि यह बहुत वक़्त तक मेरा रहेगा। तुम चाहे यात्रा पर निकलो या निकलो, है तो यह तुम्हारा ही, आख़िर राजा ने इसे तुम्हें दिया है। हाँ, मगर मैंने अनजाने द्वीप की ख़ोज पर जाने के लिए इसे माँगा था। लेकिन वे सारी चीज़ें एक पल से दूसरे पल तक थोड़े ही हो जाती हैं, इनमें वक़्त लगता है, और मेरे दादा तो नाविक होते हुए भी कहा करते थे कि समंदर में निकलने वालों को पहले ज़मीन पर रह कर तैयारी करनी पड़ती है। लेकिन नाविकों के बग़ैर हम यात्रा पर नहीं निकल सकते? यह मैं सुन चुकी हूँ, और इस तरह की यात्रा के लिए हमें जहाज़ पर एक हजार एक चीज़ें जमा करनी होंगी, जिसमें पता नहीं कितना वक़्त लग जाए, और हमें सही मौसम और ज्वार का ही नहीं, बल्कि लोगों के बंदरगाह तक आकर हमें यात्रा की शुभकामनाएँ देने का भी इंतज़ार करना पड़ेगा। तुम मेरा मज़ाक उड़ा रही हो। बिल्कुल नहीं, जिस आदमी की वजह से मैंने निर्णयों के दरवाज़े से निकल कर महल छोड़ा, उसका मैं मज़ाक कैसे बना सकती हूँ, मुझे माफ़ कर दो, और मैंने भी तय कर लिया है कि चाहे जो हो जाए, मुझे उस दरवाज़े से वापस नहीं जाना। चाँदनी, सफ़ाई करने वाली उस औरत के चेहरे पर सीधी गिर रही थी। सुंदर, बेहद सुंदर, आदमी ने सोचा, लेकिन इस बार वह जहाज़ के बारे में नहीं सोच रहा था। औरत ने कुछ नहीं सोचा, क्योंकि उसने उन तीन दिनों के दौरान ही सब कुछ जान-समझ लिया था, जब बार-बार वह दरवाज़े की दरार से झाँक कर देखती थी कि आदमी अभी वहीं है या चला गया है। रोटी का एक टुकड़ा भी बाकी नहीं बचा, ही पनीर का एक भी दाना या शराब की एक भी बूँद। जैतूनों की गुठलियाँ उन्होंने पानी में फेंक दीं और अब जहाज़ का डेक फिर से उतना ही साफ था, जितना उस औरत ने रगड़-पोंछ कर उसे बनाया था। एक स्टीमर ने अपना गुर्राहट भरा र्भोंपू बजाया तो औरत ने कहा, हम जाते समय इतना शोर नहीं करेंगे। हालाँकि वे अब भी बंदरगाह पर ही थे, फिर भी गुज़रते स्टीमर से उठती लहरों के थपेड़े उनके जहाज़ को छूते रहे। लेकिन हम शायद इससे भी ज़्यादा डोलेंगे, आदमी ने कहा और वे दोनों हँस दिए, फिर अचानक ख़ामोश हो गए। कुछ देर में उनमें से किसी एक ने कहा कि अब सो जाना चाहिए, लेकिन दूसरे ने उत्तर दिया कि मुझे तो अभी नींद महसूस नहीं हो रही नीचे बिस्तर हैं, औरत ने कहा हाँ, उस आदमी ने कहा और वे दोनों उठ खड़े हुए। ठीक है तो फिर सुबह मिलेंगे, मैं इधर दाहिनी तरफ़ जा रही हूँ। और मैं बाईं तरफ़, आदमी ने उत्तर दिया। ओह मैं तो भूल ही गई, वह औरत मुड़ी और उसने अपने एप्रन की जेब में से दो मोमबत्तियाँ निकाल लीं, ये मुझे सफ़ाई करते हुए मिली थीं, लेकिन मेरे पास माचिस नहीं है। मेरे पास है, आदमी ने कहा। औरत ने दोनों हाथों में एक-एक मोमबत्ती पकड़ी तो आदमी ने माचिस जलाई और फिर अपनी हथेलियों के जरिये लौ को हवा से बचाते हुए उसने सावधानी से दोनों बत्तियाँ जला दीं, जिनसे औरत का चेहरा जगमगा उठा। उस आदमी ने फिर सोचा, वह कितनी सुंदर है? लेकिन औरत सोच रही थी कि आदमी के दिमाग़ में सिर्फ़ अनजाना द्वीप ही बसा हुआ है। एक मोमबत्ती उसे थमाते हुए उसने कहा, कहा, अच्छी नींद ले लो, हम कल मिलेंगे। आदमी भी यही बात कुछ अलग शब्दों में कहना चाहता था। लेकिन उसके मुँह से सिर्फ़ निकला, मीठे सपने देखना। कुछ देर बाद जब वह लेटा तो उसे लगा जैसे वह औरत को ढूँढ़ रहा है और वे उस बड़े जहाज़ पर कहीं खो गए हैं।

    उसने औरत के लिए मधुर सपनों की कामना की थी, लेकिन उसे ख़ुद सारी रात सपने आते रहे। सपनों में उसने देखा कि उसका जहाज़ समंदर के बीचोंबीच लहरों से जूझ रहा है और उसके तीनों पाल हवा से फूले हुए हैं। वह स्वयं जहाज़ का पहिया घुमा रहा था और नाविक छाँह में बैठे सुस्ता रहे थे। उसकी समझ में नहीं आया कि जिन नाविकों ने अनजाने द्वीप की यात्रा पर चलने से इंकार कर दिया था, वे ही अब उसकी नाव पर क्या कर रहे थे? शायद उन्हें अपने बर्ताव पर अफ़सोस हुआ होगा। उसे बहुत सारे जानवर भी डेक पर घूमते दिखाई दिए, बत्तखें, ख़रगोश, मुर्ग़ियाँ, भेड़-बकरियाँ। उसे याद नहीं कि वह कब उन्हें वहाँ लाया था, लेकिन फिर भी उनका वहाँ होना स्वाभाविक ही लगा, क्योंकि अनजाने द्वीप के रेगिस्तानी होने की स्थिति में ये मवेशी काम आते। नीचे तहखाने की गहराई से उसे घोड़ों के हिनहिनाने, बैलों के रंभाने और गधों के रेंकने के स्वर सुनाई दिए। ये सब यहाँ कैसे आए, इस छोटे से पालदार जहाज़ पर इनके लिए जगह कैसे बनी, उसने आश्चर्य महसूस किया। तभी हवा पलटी और उसने देखा कि लहराते मस्तूल के पीछे औरतों का एक गिरोह है, जो बिना गिने भी संख्या में नाविकों से कम नहीं लग रहा था। वे सब औरताना कामों में व्यस्त थीं और ज़ाहिर है कि यह सपना ही था। क्योंकि असली ज़िंदगी में कोई इस तरह यात्रा नहीं करता। पहिये के पीछे खड़ा वह आदमी सफ़ाई-पोंछे वाली उस औरत को ढूँढ़ता रहा, लेकिन वह नहीं मिली। शायद डेक की धुलाई के बाद थकान से चूर होकर वह दाहिनी ओर वाले हिस्से में आराम कर रही है, उसने सोचा, लेकिन उसे पता था कि ऐसा नहीं है और वह अपने-आपको धोखा दे रहा है। औरत ने शायद आख़िरी घड़ी में फैसला किया था कि वह साथ नहीं चलेगी और तख़्ते पर से होती हुई वह ज़मीन पर कूद गई थी। अलविदा, अलविदा, वह चिल्लाई थी, तुम्हारी आँखें चूँकि अनजाने द्वीप के सिवाय और कुछ नहीं देखतीं, इसलिए मैं जा रही हूँ। लेकिन यह सच नहीं था, क्योंकि आदमी की आँखें अब हर जगह औरत को ढूँढ़ रही थीं। उसी वक़्त आसमान में बादल घिर आए और बारिश होने लगी। जहाज़ के दोनों ओर मिट्टी से भरे बोरों में से अनगिनत पौधे फूट निकले। वे बोरे अनजाने द्वीप पर मिट्टी मिलने के डर से वहाँ नहीं रखे गए थे, बल्कि उनका मकसद वक़्त की बचत करना था, जब वे वहाँ पहुँचेंगे तो उन्हें फलों के पौधों को बस यहाँ से वहाँ स्थानांतरित कर देना होगा, इन छोटे खेतों में पकती गेहूँ की बालियों को बाहर रोपना भर होगा और यहाँ पहले से खिली कलियों को बाहर फूलों की क्यारियों में सजा देना होगा। पहिए के पीछे खड़े आदमी ने उन सुस्ता रहे नाविकों से पूछा कि क्या उन्हें कोई उजाड़ अनबसा द्वीप दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि उन्हें कोई भी द्वीप दिखाई नहीं देता, लेकिन वे ज़मीन का पहला टुकड़ा दिखाई देते ही जहाज़ से उतर जाएँगे, बशर्ते वहाँ रुकने लायक एक बंदरगाह, नशा करने के लिए एक शराबखाना और मौजमस्ती के लिए एक बिस्तर हो, क्योंकि यहाँ इतने सारे लोगों के बीच यह सब नहीं किया जा सकता, तो फिर उस अनजाने द्वीप का क्या होगा? पहिए के पीछे से उस आदमी ने पूछा। अनजाना द्वीप सिर्फ़ तुम्हारे दिमाग़ का एक फितूर है, और राजा के भूगोलशास्त्री भी सारे नक़्शों का अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुँच चुके हैं कि पिछले कई वर्षों से कहीं किसी अनजाने द्वीप का अस्तित्व नहीं है। तब तुम शहर में रहने की जगह मेरी यात्रा ख़राब करने मेरे साथ क्यों आए? हमें रहने के लिए एक बेहतर जगह की तलाश थी और हम तुम्हारी यात्रा का फ़ायदा उठाना चाहते थे। यदि ऐसा है तब तुम लोग नाविक नहीं हो। नहीं, हम कभी भी नाविक नहीं थे। लेकिन मैं इस जहाज़ को अकेला चला पाऊँगा। यह तुम्हें राजा से जहाज़ माँगने से पहले सोचना चाहिए था, यह समुंदर तुम्हें जहाज़ चलाना थोड़े ही सिखा सकता है। तभी उस जहाज़ के पहिए के पीछे खड़े आदमी को दूर कहीं ज़मीन दिखाई दी, तो उसने उसके मरीचिका या किसी दूसरी ही दुनिया का भ्रम होने का बहाना कर उसे नज़रअंदाज कर आगे निकल जाने की कोशिश की। लेकिन उन लोगों ने, जो नाविक नहीं थे, विरोध किया और ज़िद पर अड़ गए कि उन्हें वहीं उतरना है। यह द्वीप नक्शे पर मौजूद है, वे चिल्लाए, और अगर तुम हमें वहाँ ले गए तो हम तुम्हें जान से मार डालेंगे, और तब वह जहाज़ ख़ुद-ब-ख़ुद उस ज़मीन की ओर मुड़ गया और बंदरगाह में प्रवेश कर गोदी के किनारे जा लगा। तुम सब जा सकते हो, पहिये के पीछे खड़े उस आदमी ने कहा तो वे सब एक-के-बाद एक, पहले औरतें और फिर आदमी, जहाज़ से नीचे उतर गए। लेकिन वे अकेले नहीं गए, अपने साथ वे बत्तखें, ख़रगोश और मुर्ग़ियाँ ही नहीं, बल्कि बैल, गधे और घोड़े भी ले गए। यही नहीं, समुद्री अबाबीलें भी अपने बच्चों को चोंचों में दबाकर वहाँ से उड़ गईं। ऐसा पहली बार हुआ था, लेकिन एक-न-एक दिन तो यह होना ही था। पहिए के पीछे खड़ा आदमी चुपचाप उन सबको जाते देखता रहा, लेकिन उसने उनको रोकने की कोशिश नहीं की। कम से कम वे उन पेड़ों, गेहूँ की बालियों, फूलों और मस्तूलों पर चढ़ी लताओं को उसके लिए पीछे छोड़ गए थे। जहाज़ को छोड़ते लोगों की भगदड़ में बहुत से बोरे फट गए थे और मिट्टी सारे डेक पर किसी जुते हुए, ताज़ा बोए गए खेत की शक्ल में फैल गई थी। अब थोड़ी-सी बरसात होने पर वहाँ एक अच्छी-ख़ासी फसल उग सकती थी।

    अनजाने द्वीप की यात्रा की शुरूआत से ही किसी ने पहिये के पीछे खड़े उस आदमी को भोजन करते नहीं देखा था। शायद इसीलिए कि वह सिर्फ़ सपने देख रहा था और अपने इन सपनों में अगर वह रोटी के टुकड़े या सेब की कल्पना करता तो वह भी एक विशुद्ध आविष्कार से अधिक कुछ नहीं होता। उन पेड़ों की जड़ें अब जहाज़ के ढाँचे के भीतर पैठने लगी थीं और वह समय दूर नहीं था, जब मस्तूलों और पालों की कोई ज़रूरत बाकी नहीं रह जाती। हवा को सिर्फ़ इन पेड़ों की डालियों को हिलाना होता और यह जहाज़ अपनी मंजिल की ओर चल निकलता। अब वह लहरों के ऊपर तैरता, थिरकता एक जंगल था, जिस पर पता नहीं कैसे, चिड़ियाँ चहचहाने लगी थीं। शायद वे उन पेड़ों के भीतर कहीं छिपी हुई थीं और खेतों में फसल के पकने की आहट पाकर उन्होंने बाहर आने का फैसला कर लिया है, और तब उस आदमी ने जहाज़ के पहिए पर ताला लगाया और हंसिया हाथ में लेकर वह खेत में उतर गया और जब वह कुछ बालियों को काट चुका तो उसने पाया कि एक छाया उसके पीछे खड़ी हुई है। जब उसकी नींद खुली तो उसकी बाँहें सफ़ाई वाली औरत की बाँहों के गिर्द थीं और उस औरत की बाँहों ने उसे घेर रखा था। उनके जिस्म और उनके बिस्तर एक-दूसरे में इस तरह गुंथ गए थे कि पता लगा पाना मुश्किल था कि कौन-सा दाहिने हाथ वाला हिस्सा है और कौन-सा बाएँ हाथ वाला। फिर जैसे ही सूर्योदय हुआ, आदमी और औरत अब तक अनाम उस जहाज़ के अगले हिस्से के दोनों तरफ़ सफ़ेद अक्षरों में उसका नाम लिखने में व्यस्त हो गए और दोपहर ढलने से पहले, ज्वार की तेज़ी के साथ ‘अनजाना द्वीप’ आख़िरकार अपनी स्वयं की ख़ोज में समंदर की ओर निकल पड़ा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 229)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : जोसे सारामागो
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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