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देवी वंदना
काहे कों कियो है अंबे तैनें ये बिलंब आज,कर दै इस्तंभ सत्रु सस्त्र-अस्त्र बल कों।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री राधा वंदना
श्री राधा आराध्य सुगम गति आराधन की।जो अति अगम अपार न है मति जहँनिगमन की।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री यमुना वंदना
बंदों श्री पद पद्म बंधु तनया, स्यामा प्रिया स्याम की।कालिंदी कल कूल केलि सलिला, धारा-धरा धाम की।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री गोपाल वंदना
सौने कौ मुकुट मोर चंद्रिका ढरारी सीस,तिलक बिछौना खौर किसरिया भाल पै।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री गणेश वंदना
बिघन बिदारबे कौ, सगुन सुधारीबे कौ,अघन उधारिबे कौ जाकौ नित्य काम है।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री गिरिराज वंदना
जय-जय-जय गिरिवर धरन, जय-जय-जय गिरिराज।बंदों जुग-जुग जुग-चरन, राखन-साखन लाज॥
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री मुकुंद गोपाल वंदना
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री गुरु-गोपाल वंदना
परम दयालु दीनबंधु ह्वै कृपालु प्रभु,दीजै वर एक, रमों भक्तवर बृंदों में।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
बलदेव दाऊजी वंदना
चाहें जो सु जीवन में जीवन कौ लाभ कछु—तौ पै मन मेरे तज भावना दै छुद्र की।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री सरस्वती वंदना
बिपति बिदारीबे की, कुमति निबारबे की,सुरति सँभारबे की, जाकी परी बान है।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
श्री गुरु पद नख वंदना
सोभित सलौने सुभ्र सरस सुधा सों सने,सील सिंधु रूप लसें जिन सम चंद ना।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
जयति श्री जानकी राम जोरी
जयति श्री जानकी राम जोरी।जगमग तनु गर तन जनु बिमल नखत गत बदन पर वारिये शशि करोरी॥
हरिहर प्रसाद
सिय जू रानिन में महरानी
सिय जू रानिन में महरानी और सभै रौतानी।चितवत भौंह खड़ी कर जोरे इन्द्रानी ब्रह्मानी।
हरिहर प्रसाद
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि
जगमग सिय मंडप में मंगल मचि रह्यो।मंगल पुरुष आपुइ जनु इहाँ नचि रह्यो॥
हरिहर प्रसाद
श्री बन मन हीं मन में भावत
श्री बन मन हीं मन में भावत।कहत न बनत, बनत वह देखत, कोउ सुकृती रस पावत॥
हरिहर प्रसाद
कवण न हूवा! कवण न होयसी
गीता नाद कविता नाऊं, रंग फटा रस टारूँ॥फोकट प्राणी भूरमे भूला, भलजे यों चीन्हों करतारूँ।
जांभोजी
बसौ यह सिय रघुबर को ध्यान
बसौ यह सिय रघुबर को ध्यान।श्यामल गौर किशोर बयस दोउ, जे जानहुँ की जान॥
हरिहर प्रसाद
यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ
यह दिव्य प्रसाद प्रिया प्रिय कौ।दरसत ही मन मोद बढ़ावत, परसत पाप हरत हिय कौ॥
भगवत रसिक
यह प्रसाद हो पाऊं श्रीजमुनाजी
यह प्रसाद हो पाऊं श्रीजमुनाजी।तुम्हारे निकट रहौं निशवास रामकृष्ण गुण गाऊं॥