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हरि के दास कहावत हो
हरि के दास कहावत हो, मन में कौतुकी आस।राम-नाम को परगट बेचे, करत भक्ति को नास॥
निपट निरंजन
चालाँ वाही देस
चालाँ वाही देस प्रीतम पावाँ चलाँ वाही देस।कहो तो कुसुमल साड़ी रंगावाँ, कहो तो भगवा भेस॥
मीरा
निर्गुन कौन देस को वासी
निर्गुन कौन देस को बासी?मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति, साँच, न हाँसी॥
सूरदास
मोरा पिया बसै कौन देस हो
मोरा पिया बसै कौन देस हो।अपने पिया को ढूँढ़न हम निकसीं, कोइ न कहत सनेस हो॥
धनी धरमदास
सुखमैं मानै मैं सुखी
सुखमैं मानै मैं सुखी, दुखमैं दुखमय होइ।मूढ़ पुरुषकी दिष्टिमैं, दीसैं सुख दुख दोइ॥
बनारसी दास
दुबिधा कब जैहैं या मन की
दुबिधा कब जैहैं या मन की।कब जिननाथ निरंजन सुमिरौं, तजि सेवा जन जन की।
बनारसी दास
बैठे घनश्याम सुंदर खेवत है नाव
डरपत हो श्याम सुंदर राखिये पद पास॥याहि मिष मिल्यो चाहे परमानंद दास॥
परमानंद दास
डोलमाई झूलत हैं ब्रज नाथ
चोवा चंदन बूका बंदन उड़त गुलाल अबीर।परमानंद दास बलिहारी राजत हैं बलबीर॥
परमानंद दास
राखी बंधन नंद कराई
आनंदे ब्रजराज जसोदा मानो अधन निधि पाई।परमानंद दास की जीवनि चरन कमल लपटाई॥