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चैत्र मास संवत्सर परिवा
चैत्र मास संवत्सर परिवा बरस प्रवेस भयौ है आज।कुंज महल बैठे पिय प्यारी लाल तन हेरैं नौतन साज॥
परमानंद दास
गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो
गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो।ममता नींद कहा मन सूतो जागि हरिसूं चितलावो॥
सहजोबाई
वेषधारी हरि के उर सालै
नाचैं-गावैं, चित्र बनावैं, करै काव्य चटकीली।साँच बिना हरि हाथ न आवै, सब रहनी है ढीली॥
भगवत रसिक
राणाजी म्हें तो गोविंद का गुण गास्याँ
यह संसार बाड़ का काँटा ज्याँ संगत नहिं जास्याँ।मीरा के प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्याँ॥
मीरा
हरि, तेरी लीला की सुधि आवै
हरि, तेरी लीला की सुधि आवै।कमल नैन मन-मोहनि मूरति, मन-मन चित्र बनावै॥
परमानंद दास
केसव! कहि न जाइ का कहिये
सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे॥
तुलसीदास
माई हों गिरिधर गुण गाउं
खेलन आंगन आओ लाड़ले नेकहु दरसन पाउं।कुंभनदास हिलग के कारन लालचि मन ललचाउं॥
कुंभनदास
माई री, हौ आनंद गुन गाऊँ
जब तें कमल-नैन ब्रज आये, सकल संपदा बाढ़ी।नंदराय के द्वारे देखौं अष्टमहासिधि ठाढ़ी॥
परमानंद दास
तरह-तरह के आसन करके
तरह-तरह के आसन करके दिलवर-ध्यान लगावैं हैं।भेदि सुषुम्ना नाड़ी-मारग माथे प्रान चढ़ावैं हैं॥
ललितकिशोरी
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल
झूलत राधा-मोहन कालिंदी के कूल।सघन-लता सुहावनी चहुं दिसि फूले फूल॥
नंददास
आये मेरे नंदनंदन के प्यारे
आये मेरे नंदनंदन के प्यारे।माला तिलक मनोहर बानो, त्रिभुवन के उँजियारे॥
परमानंद दास
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन
विठ्ठलनाथ अनाथ के तारन।श्रीवल्लभ-गृह प्रगट रूप यह धरयो भक्त हितकारन॥