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सुन सखी निठुर पप्पैया बोले
सुन सखी निठुर पप्पैया बोले।पिहु-पिहु कर पिय सूरत जनावे, मेरो प्राण पात जिहुं डोले॥
कुंभनदास
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि।नन्द गाँव बरसानो हिलि मिलि गावत इत उत रस की गारि
रसिकबिहारी
मूरख, छाँड़ि बृथा अभिमान
रे मन मूढ़, अनत जनि भटकै, मेरो कह्यौ अब मान।'नारायण' ब्रजराज-कुँवर सों, बेगहिं करि पहिचान॥
नारायण स्वामी
काहे को गोपीनाथ कहावत
ज्यों गतराज काज के औसर औरे दसन दिखावत।कहत सुनन को हम हैं ऊधो सूर अनत बिरमावत॥
सूरदास
सुंदर मुखकी हों बलि बलि जाऊं
सुंदर मुखकी हों बलि बलि जाऊं।लावन्यनिधि गुन निधि सभा निधि देख जीवत सब गाऊं॥
परमानंद दास
बलि जैहों श्री रसिकाचारज
बलि जैहों श्री रसिकाचारज।नित बिहार उद्धार कियो जिन, मथिकै हृदय-सिंधु वर बारज॥
भगवत रसिक
थान दे गोरिए बाला
थान दे गोरिए बाला, भाई बिन प्याले प्याला जी।गियांन की हाल्हीला पालंखू, गोरख बाला पौढ़ीला जी॥
गोरखनाथ
रसिक कुँवरि बलि जाऊँ
रसिक कुँवरि बलि जाऊँ कह्यो जु मानो मेरो।पेंडे तें नेक इत उसरो जू कोंन टेव तुम्हारी हो वारि डारी—
गोविंद स्वामी
अहो बलि! द्वारे ठाड़े बामन
अहो बलि! द्वारे ठाड़े बामन।चार्यो वेद पढ़त मुख पाठी अति सुमंद सुरगावन॥