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की हम साँझक एक सरि तारा
की हम साँझक एक सरि तारा भादव चौठिक ससी।इथि दुहु माझ कोन मोर आनन जे पहु हेरसि न हँसी॥
विद्यापति
दुनिया के परपंचों में
दुनिया के परपंचों में हम मजा नहीं कुछ पाया जी।भाई-बंद, पिता-माता, पति सब सों चित अकुलाया जी॥
ललितकिशोरी
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ
पिय तोहि नैनन ही में राखूँ।तेरी एक रोम की छबि पर, जगत वारि सब नाखूँ॥
गोस्वामी हरिराय
नाम में रूप, नाम में विद्या
बैजू
मेरा तेरा मनुओं कैसे इक होई रे
मेरा तेरा मनुओं कैसे इक होई रे।मैं कहता हौं आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी।
कबीर
ठाडी एक बात सुनि धीरी
ठाडी एक बात सुनि धीरी।भोर हितें कहा मटुकी लियें डोलति ब्रज-वासिनी अहीरी॥
चतुर्भुजदास
यह तन इक दिन होय जु छारा
यह तन इक दिन होय जु छारा।नाम, निशान न रहि है रंचहु भूलि जायगो सब संसारा।
जुगलप्रिया
हम तुम पिया एक से दोऊ
हम तुम पिया एक से दोऊ।मानौ बिलग न नेक सांवरे घट बढ़िकै नहिं कोऊ॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अदभुत देख्यो नंद भवन में
अदभुत देख्यो नंद भवन में लरिका एक भला।कहा कहूं अंग अंग प्रति सोभा कोटिक काम कला॥
परमानंद दास
खेलन में को काको गुसैयाँ (एन.सी. ई.आर.टी)
राखति एक पाई ठाढ़ौ करि, अति अधिकार जनावति।कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ौ ह्वै आवति।
सूरदास
‘दया कुवरि’ या जक्त में
‘दया कुवरि’ या जक्त में, नहीं रह्यो फिर कोय।जैसे बास सराय की, तैसो यह जग होय॥
उर में घाव, रूप सों सैंकै
उर में घाव, रूप सों सैंकै, हित की सेज बिछावै।दृग-डोरे सुइर्या बर-बरुनी, टाँके ठीक लगावै।
सहचरिशरण
तनि एक मनुआं धरा तूं धीर
तनि एक मनुआं धरा तूं धीर॥टेक॥पाँच सखी आइल मेरो अंगना, पांचों का हथवा में पाँच-पाँच तीर॥
संत शिवनारायण
रंग-भवन में रात्रि
जा में है नवेलिन की निखरी निकाई अंग,अगन की बसन गए हैं कहूँ नेकु टरि।