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मगधअवंती
मगध को बनाए है, तो,मगध में शांति
एक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरेकाग़ज़-सा
सीढ़ियाँ चढ़ रही हैवसंतसेना
मैं एक भागता हुआ दिन हूँ और रुकती हुई रात—मैं नहीं जानता हूँ
चाहता तो बच सकता थामगर कैसे बच सकता था
शहरों के छतों मेंह-ल-च-ल
—यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गईबग़ल से
अंधकार कछुए-सा बैठा पृथ्वी परकछुए पर बैठा है नीला आकाश—
देर से उठकरछत पर सर धोती
रोज़ शामसड़कों पर
हवा में झूल रही है एक डाल : कुछ चिड़ियाँकुछ और चिड़ियों से पूछती हैं हाल!
एक सुबह उठते ही लगता हैमेरा विश्वास
भटक गया हूँ—मैं आसाढ़ का पहला बादल!
मैं अब हो गया हूँ निढाल।अर्थहीन कार्यों में
मेरी माँ की डबडब आँखेंमुझे देखती हैं यों
भागकर अकेलेपन से अपनेतुममें मैं गया।
बाबर समरकंद के रास्ते पर हैसमरकंद बाबर के रास्ते पर
डोम मणिकर्णिका से अक्सर कहता है,दु:खी मत होओ
लौटकर सब आएँगेसिर्फ़ वह नहीं
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