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रँगी सुरत-रंग पिय-हियैं
रँगी सुरत-रंग पिय-हियैं, लगी जगी सब राति।पैंड़ पैंड़ पर ठठुकि कै, ऐंड़-भरी ऐंडाति॥
बिहारी
जिणरो रूप न रंग अंग
जिणरो रूप न रंग अंग, करण मरण अर जीव।रंग बास बन ज्यों रमै, अस पीपे को जीव॥
संत पीपा
अछै रंग में रंगिया
अछै रंग में रंगिया, दीन्ह्यो प्रान अकोल।उनमुनि मुद्रा भस्म धरि, बोलत अमृत बोल॥
बुल्ला साहब
रँग भरि खेलौं पिउ सौँ
रँग भरि खेलौं पिउ सौं, तहँ बाजै बेन रसाल।अकल पाट परि बैठा स्वामी, प्रेम पिलावै लाल॥
दादू दयाल
स्याम-सुरँग रँग-करन-कर
स्याम-सुरँग रँग-करन-कर, रग-रग रँगत उदोत।जग-मग जगमग जगमगत, डग डगमग नहिं होत॥
दुलारेलाल भार्गव
रत्नावलि पति राग रंगि
रत्नावलि पति राग रंगि, दै विराग में आगि।उमा रमा बड़ भगिनी, नित पति पद अनुरागि॥
रत्नावली
जगी जोति जहँ जूझ की
जगी जोति जहँ जूझ की, खगी खंग खुलि झूमि।रँगा रूधिर सों धूरि, सो धन्य धन्य रण-भूमि॥
वियोगी हरि
ब्रह्म फटिक सम मन लसै
ब्रह्म फटिक सम मन लसै, घट-घट माँझ सुजान।निकट आय बरतै जो रँग, सो रँग लगै दिखान॥
रसनिधि
तू सिय पिय के रंग रँगी
तू सिय पिय के रंग रँगी, रँगे पीय तव रंग।रहे अली इक रूप ह्वै, ज्यों जल मिले तरंग॥
बाल अली
पीपा तूं क्यों रींग तौ
पीपा तूं क्यों रींग तौ, अर बक्सो नीम झरी।जग को हरिजू ने सोच है, हरि जूँ करै खरी॥