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बंस-बंस में प्रगटि भई
बंस-बंस में प्रगटि भई, सब जग करत प्रसंस।बंसी हरि-मुख सों लगी, धन्य वंस कौ बंस॥
नागरीदास
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ, तहाँ प्रगट हरि होय।‘दया’ दया करि देत है, श्री हरि दरशन सोय॥
दयाबाई
राम नाम कौं छाडि कै
राम नाम कौं छाडि कै, और भजै ते मूढ।सुन्दर दुख पावै सदा, जन्म-जन्म वै हूढ॥
सुंदरदास
और सकल अघ-मुचन कौ
और सकल अघ-मुचन कौ, नाम उपायहिं नीक।भक्त-द्रोह कौ जतन नहिं, होत बज्र की लीक॥
ध्रुवदास
‘व्यास’ न कथनी और की
‘व्यास’ न कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥
हरीराम व्यास
पिया मेरे और मैं पिया की
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।जो कुछ होय सो मौज से होई, पिया समरथ करें सोई॥
संत सालिगराम
और अरिस्या विरह दुख
और अरिस्या विरह दुख, हिलग अग बड़ दोई।सिखी धूम्र औ ताप बिन, जिमि कहु कदा न होइ॥
दयाराम
सुन्दर चितवै और कछु
सुन्दर चितवै और कछु, काल सु चितवै और।तूं कहुं जाने की करै, वहु मारै इहिं ठौर॥
सुंदरदास
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
तरे और कों तारही
तरे और कों तारही, लौकालोहू न्याय।नौका ज्यों पाखान ज्यों, बूडे देत बुडाय॥
दीनदयाल गिरि
और प्रसंस लगें न रुचि
और प्रसंस लगें न रुचि, कीनी अति मनुहारि।जेसि मनोहर माधुरी, लगें प्रेम की गारि॥
दयाराम
और धर्म अरु कर्म करत
और धर्म अरु कर्म करत, भव-भटक न मिटिहै।जुगम-महाशृंखला जु, हरि-भजनन कटिहै॥