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नहिं मृगंक भू अंक यह
नहिं मृगंक भू अंक यह, नहिं कलंक रजनीस।तुव मुख लखि हारो कियो, घसि घसि कारो सीस॥
रसलीन
द्वैज-सुधा दीधिति-कला
द्वैज-सुधा दीधिति-कला, वह लखि, दीठि लगाइ।मनौ अकास-अगस्तिया, एकै कली लखाइ॥
बिहारी
काला सर्प शरीर में
काला सर्प शरीर में, खाइनि सब जग झारि।बिरले ते जन बाँचि हैं, जो रामहि भजे बिचारि॥
कबीर
कलि कानन अघ ओघ अति
कलि कानन अघ ओघ अति, विकट कुमृगन्ह समानु।हरि जस अनल लहै इतै, ग्यान बिराग कृपानु॥
झामदास
कलि पूजैं पाखंड कौं
कलि पूजैं पाखंड कौं, जजैं न श्रुति आचार।मगध नट विट दान दैं, तथा न द्विज कर प्यार॥
दीनदयाल गिरि
फूलति कली गुलाब की
फूलति कली गुलाब की, सखि यहि रूप लखै न।मनौ बुलावति मधुप कौं, दै चुटकी की सैन॥
मतिराम
कलि पाषंडनि के तरलि
कलि पाषंडनि के तरलि, भए सुजान अजान।निंदत हैं हरि भजन करि, बंधक करम बखान॥
दीनदयाल गिरि
जित जित विकसित कंज कलि
जित-जित विकसित कंज कलि, तित-तित फिर नँदलाल।तकत जकत कह काह कहु, कारण कवन जमाल॥
जमाल
एहि कलि पारावार महँ
एहि कलि पारावार महँ, परौ न पावत पार।'झाम' राम गुन गान तैं, बिनु प्रयास निस्तार॥
झामदास
कलि मल हरन सरीर अति
कलि मल हरन सरीर अति, नहिं लखि अपर उपाइ।एह रघुपति गुन सिंधु मरु, मजत उज्जलताइ॥