प्रेम बिन चले न घर की चाल
prem bin chale na ghar ki chaal
प्रेम बिन चले न घर की चाल।
सतसंग करे समझ तब आवे, गुरु चरनन में प्रीत सम्हाल॥
गुरु भक्ति की रीत सम्हारे, छोड़े जग की चाल औ ढाल।
गुरु स्वरूप का धारे ध्याना, शब्द सुने तज माया ख़याल॥
घट में देखे बिमल प्रकासा, मगन होय सुन शब्द रसाल।
प्रीत प्रतीत बढ़े तब दिन-दिन, पावे राधास्वामी दरस बिसाल॥
- पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 355)
- संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
- रचनाकार : संत सालिगराम
- प्रकाशन : किताब महहल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1981
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