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प्रेमी सुनो प्रेम की बात

premi suno prem ki baat

संत शिवदयाल सिंह

संत शिवदयाल सिंह

प्रेमी सुनो प्रेम की बात

संत शिवदयाल सिंह

प्रेमी सुनो प्रेम की बात।

सेवा करो प्रेम से गुरु की और दर्शन पर बल-बल जात॥

बचन पियारे गुरु के ऐसे जस माता सुत तोतरि बात।

जस कामी को कामिन प्यारी अस गुरुमुख को गुरु का गात॥

खाते-पीते चलते-फिरते सोवत-जागत बिसरि जात।

खटकत रहे भाल ज्यों हियरे दर्दी के ज्यों दरद समात॥

ऐसी लगन गुरु संग जाकी वह गुरुमुख परमारथ पात।

जब लग गुरु प्यारे नहिं ऐसे तब लग हिरसी जानो जात॥

मनमुख फिरे किसी का नांही कहो क्योंकर परमारथ पात।

राधास्वामी कहत सुनाई अब सतगुरु का पकड़ो हाथ॥

स्रोत :
  • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 345)
  • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
  • रचनाकार : संत शिवदयाल
  • प्रकाशन : किताब महहल, इलाहाबाद
  • संस्करण : 1981

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