धन्य सोई भक्ति अनुरागा
dhany soi bhakti anuraga
धन्य सोई भक्ति अनुरागा। धन्य सोई जेहि आतम जागा॥
धन्य सोई जिन्ह सेवा कीन्हा। धन्य सोई जिन्ह सतगुर चीन्हा॥
धन्य सोई सत शब्द समाई। प्रेम प्रीति बिलगे नहिं भाई॥
धन्य सोई जिन्ह खसमहिं जाना। धन्य सोई सतब्रत जिन्ह ठाना॥
धन्य सोई प्रेम पगु ठाढ़ा। धन्य सोई असल रंग गाढ़ा॥
प्रेम युक्ति निजु खोजहु भाई। जाते जीवन सुफल होय जाई॥
सतगुरु बिना न होखे कामा। सतगुरु प्रेम बसे निजु धामा॥
वह मनुष्य धन्य है जिसके हृदय में परमात्मा की भक्ति और प्रेम है, जिसकी आत्मा जाग गई है, जिसने सच्चे गुरु की पहचान करके उसकी सच्ची सेवा की है और सच्चे शब्द की धुन में लीन होने के बाद जिसका प्रेम क्षण-भर के लिए भी नहीं छूटता। वह धन्य है जिसने परमात्मारूपी पति को पहचान लिया है तथा उसकी भक्ति की सच्ची साधना में जुटा हुआ है। वह धन्य है जिसने प्रभु-प्रेम का मार्ग अपना लिया है तथा जिस पर इस सच्चे प्रेम का पक्का रंग चढ़ गया है। दरिया साहिब कहते हैं कि परमात्मा से प्रेम करने की सच्ची विधि की तलाश करो जिससे तुम्हारा जीवन सफल हो जाए। यह कार्य सतगुरु के बिना नहीं होगा; सतगुरु से सच्चा प्रेम करके ही जीव अपने असली घर पहुँच सकता है।
- पुस्तक : दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 125)
- संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
- रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
- संस्करण : 2016
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