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अब सुनि मेरे मन आवत है सोई कहौं

ab suni mere man aavat hai so.ii kahau.n

जसवंत सिंह

जसवंत सिंह

अब सुनि मेरे मन आवत है सोई कहौं

जसवंत सिंह

और अधिकजसवंत सिंह

    अब सुनि मेरे मन आवत है सोई कहौं,

    जामैं निसंदेह ब्रह्मतत्व कौ प्रकास है।

    देह तौ बिचारे तैं आभास ही पै लागत है,

    तैसैं ही बिचारि यामैं ग्यान कौ आभास है।

    लगायो है खिरकी मैं पारै बिना काच जैसैं,

    तामैं जैसैं बाहर कौ भीतर विलास है।

    ऐसै प्रतिबिंब मान्यौ आबरन जान्यौ गयौ,

    तैसैं ही सरीर विषैं ग्यान कौ निवास है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 139)
    • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
    • रचनाकार : जसवंत सिंह
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
    • संस्करण : 1972

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