चंदन कौ खैरि चारु अँगराग घनसार
chandan kau khairi charu angarag ghansar
चंदन कौ खैरि चारु अंगराग घनसार,
अंग-अंग सुमन सिगार मन मोहियै।
मोतिनु मुकुट धरै हीरनु के हार गरे,
पायजेब पाइनि जरायनि के जोहियै।
चटक मटक पट पीति की फरहरानि,
कहत गुविंद उपमान आन टोहियै।
गोरिन के रंगरंगे आठौ जाम घनस्याम,
तौ हू घनस्यामति तें घनेस्याम सोहियै॥
- पुस्तक : गोविंददास कृत दूषणोल्लास (पृष्ठ 203)
- संपादक : बनीबहादुर सिंह
- रचनाकार : रसिक गोविंद
- प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
- संस्करण : 1965
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