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अंजन सुरंग जीते खंजन, कुरंग, मीन

anjan surang jite khanjan, kurang, meen

सेनापति

सेनापति

अंजन सुरंग जीते खंजन, कुरंग, मीन

सेनापति

अंजन सुरंग जीते खंजन, कुरंग, मीन

नैंक कमल उपमा कौं नियरात है।

नीके, अनियारे, अति चपल, ढरारे, प्यारे

ज्यौं-ज्यौं मैं निहारे त्यौं त्यौं खरौ ललचात है।।

सेनापति सुधा से कटाछनि बरसि ज्यावैं,

जिनकौं निरखि हियौ हरषि सिरात है।

कान लौं बिसाल, काम भूप के रसाल, बाल

तेरे दृग देखे मेंरौ मन अघात है।।

नायिका के नेत्र अंजन से अधिक चमकदार और सुंदर प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने अपनी सुंदरता से नेत्रों के उपमान कहे जाने वाले खंजन, हरिण और मछली को भी मात दे दी है। कमल तो उसके नेत्रों की उपमा के लायक ही नहीं हैं। नायिका के नेत्र अच्छे लगने वाले हैं, नुकीले, पैने, चंचल, सुंदर और प्यारे लगने वाले हैं। मैं उन्हें ज्यों-ज्यों देखता हूँ, त्यों-त्यों उन्हें और देखने के लिए लालायित हो उठता हूँ। वे नेत्र अपने कटाक्षों से अमृत की वर्षा-सी करते हुए प्रतीत होते हैं। वे नया जीवन देने वाले हैं। उन्हें देखकर हृदय हर्षित होता है और शीतल हो जाता है। वे नेत्र कानों तक लंबे, विशाल हैं। वे कामदेव राजा के सुंदर बालक जैसे हैं। उन्हें देखकर मेरा मन ही नहीं भरता। उन्हें और देखने की इच्छा बनी रह जाती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : कवित्त रत्नाकर (पृष्ठ 31)
  • रचनाकार : सेनापति
  • प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
  • संस्करण : 1971

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