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यात्राएँ

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मधु सिंह

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मधु सिंह

और अधिकमधु सिंह

    अक्सर कई बार

    जब हम निकलते हैं घर से

    कहीं नहीं पहुँचने के लिए

    तब भी हम पहुँच रहे होते हैं

    दुनियाँ के मानचित्र पर

    कहीं कहीं

    हम ख़ुद ठहरे होकर भी

    दूसरे की यात्राओं में दाख़िल हो जाते हैं चुपचाप

    हम देखते हैं भागती बसों-कारों को

    सुनते हैं पास में खड़े युगल जोड़े की बातों को

    जब हम कहीं नहीं पहुँचने के लिए निकलते हैं

    तब

    पहचानते की कोशिश करते हैं

    आस-पास से गुजरते लोगों को

    दरअसल उस वक्त हम ख़ुद में होते हैं

    दुनिया की भीड़ से अलग

    कोशिश करते हैं ख़ुद को पहचाने की

    वक्त की ग़ुल्लक से

    यादों के खनखनाते सिक्के को जुटाने की

    ताकि बचा सके

    यादें

    बचा सके

    इस नितांत अजनबी समय में

    ख़ुद के होने का सच

    सच कितना भयावह होता है

    जब भी हम कहीं के लिए नहीं निकलते

    सिर्फ़ एक अनथक सफ़र का हिस्सा होते हैं

    ख़ुद में उलझे

    एक द्वीप की तरह

    सबसे कटा

    सबसे दूर

    अकेलेपन

    और अनिश्चितताओं से भरे

    एक शून्य की तरह

    स्रोत :
    • रचनाकार : मधु सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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