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तुम ले चलो मुझे

tum le chalo mujhe

मधु सिंह

मधु सिंह

तुम ले चलो मुझे

मधु सिंह

और अधिकमधु सिंह

    तुम ले चलो मुझे

    दुनिया की भीड़ से छिपाकर

    जहाँ पत्तियों के झुरमुट से

    सूरज की किरणें झाँकती हो

    छूकर दुनिया को महसूस करा जाती है

    तुम साथ ले चलोगे वहाँ

    जहाँ बारिश की पहली बूँदें झुलसी मिट्टी से

    सौंधी ख़ुशबू फैला देता

    और खिल जाता है

    किसानों के उम्मीद का पोर-पोर

    तुम ले चलोगे मुझे वहाँ

    जहाँ साँझ के ढलते ही

    सब लौटते हैं

    ज़िंदगी की आपाधापी से थककर

    चाँद को तकिया बना

    एक शिशु-सी मुस्कान लिए

    सपनों से लिपटने

    तुम ले चलोगे मुझे वहाँ

    जहाँ नक्षत्रों और सौर मंडल से

    दिखती है एक तैरती पृथ्वी

    जहाँ बसता है

    लोगों के बीच

    प्रेम का गुरुत्वाकर्षण

    तुम ले चलोगे मुझे वहाँ

    जहाँ हवा की सरसराहट

    कानों के पास से गुजरते हुए

    सुना जाती हो एक प्रेम कथा

    तुम ले चलो मुझे

    भौरों की दुनिया में

    जहाँ तितलियों के स्पर्श से

    खिल जाती हो कलियाँ

    मुझे ऐसी लोककथाओं की

    यात्रा पर ले चलो

    जहाँ संवाद के बाद

    एक गहरी चुप्पी हो

    वहाँ सिर्फ़ तुम रहो

    और मैं रहूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मधु सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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