Font by Mehr Nastaliq Web

तीन मीटर ख़ुशबू के अहाते में उगा हुआ गुलाब

teen meter khushbu ke ahate mein uga hua gulab

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल

तीन मीटर ख़ुशबू के अहाते में उगा हुआ गुलाब

विनोद कुमार शुक्ल

और अधिकविनोद कुमार शुक्ल

    तीन मीटर ख़ुशबू के अहाते में उगा हुआ गुलाब

    ख़ुशबू के अहाते को बिखेर या कतर कर

    कुछ इस तरह कोट बन गया

    कि गुलाब का फूल कॉलर में उगा है

    जब मैंने गुलाब का फूल तोड़ा

    जब मुझे तफ़रीह करनी थी

    तब मुझे एक कोट बनवाना था

    तब मुझे एक क़मीज़ भी बनवानी है

    जब मुझे पंद्रह रुपए ख़र्च करने हैं

    वे रुपए कहाँ हैं?

    मेरी बचत का रुपया

    हर बार ख़र्च हुआ

    बाप के उधारखाते में मेरा नाम दर्ज हुआ

    जब भी थोड़ा तंदुरुस्त हुआ

    बहुत बीमार हुआ।

    ख़ुशबू का पारदर्शक कोट पहनकर

    ज़िंदगी का अजीब जोकर लगता हूँ

    अंदर वही पुरानी क़मीज़

    उसमें बाप जी को लिखा एक पोस्टकार्ड

    कि यहाँ सब ठीक।

    पोस्टकार्ड डालना कुछ दिनों से भूल रहा था

    उसकी दृष्टि की पहली ठोकर से उछलकर

    लाल डिब्बे के सामने आकर खड़ा हुआ चौकन्ना चुस्त!!

    चिट्ठी डाल देता हूँ

    बड़ा काम होता है

    ज़िंदगी से मेरे ठीक होने की ख़बर

    मुझसे अलग होती है

    जो मुझसे जुड़ी नहीं थी

    उस ख़बर के जुड़ने का

    पैदाइशी निशान

    कहीं ज़रूर है

    या वह पूरा मैं हूँ—

    अच्छा नाक-नक़्शा नहीं

    पक्का नहीं कि पहली जनवरी को पैदा हुआ

    छुटपन में गिरने के

    कुहनी-घुटनों में निशान हैं

    पीठ में फोड़े बहुत निकलते हैं

    आप कैसे हैं?

    कितने बाल-बच्चे हैं?

    अत्र कुशलम् तत्रास्तु!!

    परम पिता परमेश्वर की अनुकंपा से

    हमारा आपका उपनयन संस्कार भी हुआ है

    बिसाहू, हरवाहा, चरवाहा की मिट्टी पलीद है।

    चिट्ठी के अलावा

    मेरे पते पर पहुँचने के पहले

    गोल बाज़ार की सड़क

    स्टेडियम में बदलती है

    ऊँचे छज्जों, बालकनी, गैलरी

    दुमंज़िले, तिमंज़िले में बैठे

    घूमते लोगों के लिए

    मेरे पते पर पहुँचने का

    उनका खेल शुरू होता है!

    समय से पहले ख़त्म होने का एक मैच—

    उनकी दृष्टि की हॉकी स्टिकों के बीच

    पूरी लंबाई के ऊपर

    उछला तना हुआ

    अपना गोल सिर बचाता फिरता

    अपनी आँख बचाता हुआ

    ग़ुस्से से ऊपर तकता हूँ

    पैर बचाता हुआ

    कुचल देने के लिए

    लात घुमाता हूँ

    हवा में घूँसे

    गोया हवा को घूँसे

    गोया उनकी साँस को चोट!

    “हो! हो! शाबाश! बचके ज़ोर लगाओ!

    अभी मरे नहीं। कोशिश करो। तंदुरुस्त हो।

    कुछ नहीं बिगड़ा। लेकिन बचोगे नहीं!”

    मकानों की खुली खिड़कियों से

    लाउडस्पीकर से आवाज़ आती है

    फुसफुसाकर मैं भी कहता हूँ

    कि कोशिश करूँगा और बचूँगा।

    यद्यपि दोस्त से मिलने की जगह मालूम है

    लेकिन दोस्त का ठिकाना नहीं

    साहूकार का ठिकाना मालूम है

    भूगोल मालूम है

    अमरीका मालूम है

    साहूकार बहुरूपिया, बहुत रुपया

    मालिकों का मालिक या नौकरों का नौकर

    सैकड़ों जोड़ी जूते वाला दो पैर का जानवर—

    नंगे पैर का आदमी जिसकी फ़िराक़ में

    बड़ी मेहरबानी!

    झोपड़ी बनाने के लिए क़र्ज़ देकर

    ब्याज में झोपड़ी ले लेता

    ज़मीन ले लेता

    प्रदेश ले लेता

    फिर भी बेघर के दरवाज़े को खटखटाकर

    कभी भी कहीं से भी बरामद करवाकर

    क़र्ज़ वसूलने का उसका दावा

    दिन के उजाले में हमें निकालता

    रात के अँधेरे में बंद कर देता

    या लोग कोई झोपड़ी नहीं के अंदर जाकर

    कोई दरवाज़ा नहीं को बंद कर लेते

    कोई खिड़की नहीं को खोल लेते

    या छोटा-सा झरोखा भी नहीं

    के पास आकर बैठ जाते हैं

    दुनिया देखते हैं।

    गोल बाज़ार की सड़क में तालियों के बीच

    अपनी पत्नी से मैं खाना परोसने के लिए कहता हूँ

    एक पूरी थाली—

    अरहर की दाल, रोटियाँ, चटनी, ख़ुशबूदार चावल

    रसेदार गोभी, बढ़िया थाली

    उनकी कोशिश होती है कि दिमाग़ में उतरे

    ताकि पेट और दिमाग़ का काम एक होकर

    गहराई से सोचना गू हो जाए।

    बाज़ू के घर की छत में लाइन से बैठे

    काले कव्वों के झपटने के लिए आम थाली नहीं

    ये विचार से रोटी को झपटकर उड़ जाने को तैयार

    बैठे तत्पर

    नुकीली तेज़ चोंच इनकी है

    विचारों की गहराई तक धँसाकर

    नोचने बैठे काले कव्वे

    भगाने से नहीं भागते हैं—पत्नी कहती है

    भगाने से नहीं भागते हैं—मुहल्ले के लड़के कहते हैं

    मैं कुछ भी नहीं कहता

    कोई कुछ नहीं कहता

    तब भी सब सुनते हैं

    —इनको भगाते रहो

    ज़रूरी विचारों से मज़बूत बनो

    मरे हुए कव्वों की खाल ओढ़कर

    साहूकारों की जमात इकट्ठी है।

    बहुतों की खोल में हीरे की बटन लगी है

    छत पर कव्वे इकट्ठे होने के अंधविश्वास

    का सहारा ले

    मेहमान बनकर मुहल्ले में आएगा

    उड़कर नहीं, पैदल चलकर आएगा

    उनकी पेटी में कव्वों की खाल होगी

    जो अधनंगे बच्चों की भेंट होगी

    खिलौने घुनघुने होंगे। इनको भगाते रहो।

    शायद वह मुझसे भी कहे

    कि कॉलर में लगा गुलाब का फूल मुरझा गया है

    बहुत तफ़रीह हो गई

    दस-पाँच रुपया बचने से कुछ नहीं होगा

    क़मीज़ सिलवाने के बदले

    कव्वे की खाल ओढ़कर जमात के साथ बैठूँ

    काँव! काँव!! बोलना सीखूँ!

    वह मुझे डाँटेगा, धमकी देगा

    कि मैंने गुलाब का फूल क्यों तोड़ा था

    फिर वह कान में इत्र का फाहा खोंस

    बग़ीचा समारोह में शामिल होगा

    तब बादल से सूरज,

    मोटर की डिकी से, जैसे निकलेगा

    उनके वातावरण को रंगीन बना देगा

    वातावरण में डिस्टेंपर!!

    वातावरण की बाहरी दीवालों पर

    ऊँगली फिराने से कोई रंग नहीं आता

    उनके वातावरण में अंदर जाने की मनाही है

    लेकिन मिट्टी में हाथ रखने से

    मिट्टी का रंग नहीं

    मिट्टी जाती है

    क्या यह गंदगी है?

    लीख से भरे बालों वाले

    लड़के के चेहरे में मैल की परत—

    मैल की परत का नक़ाब!

    नक़ाबपोश, चोर, डाकू

    उचक्का, गँवार, ग़ुंडा

    वह ग़रीब का लड़का।...

    बहुत से उदाहरण थे

    उदाहरणों की भीड़

    कविता में आने की

    उनकी धकापेल मची

    बड़ा ग़ुस्सा

    किसी की नाक फ़ाउंटेनपेन

    लिखना सूँघने के समान

    इसलिए ख़ुशबू सूँघ से अदृश्य होकर

    ख़ुशबू बोलकर

    कान उसको आँख की तरह देखता सुनता है

    इस तरह का कारोबार

    पूरा चेहरा बिगड़ा है।

    तब मैं उसकी पहली करतूत के

    उदाहरण को ढूँढ़ने के लिए

    सब कुछ उलटकर

    पहले अपनी तलाशी लेता हूँ

    ख़ुद उदाहरण होने से बचता

    केवल दो मिनट

    बंद दीवाल घड़ी की तरफ़ देखता

    कि कितनी देर तक

    ख़त्म हुआ समय क़ायम रहता है

    इस तरह दो मिनट बर्बाद करता हूँ।

    अपनी तलाशी लेते

    मैं एक नई कविता शुरू करता

    तो वह हज़ारों कविता की पृष्ठभूमि

    तैयार कर देता है—

    अकेले मेरे बस का नहीं

    पूरी कविता पूरी कार्रवाई नहीं

    पोटली में दो किलो चावल नहीं

    यह ज़मीन पर गिरे

    दो किलो चावल के एक-एक दाने को बीनकर

    मुहल्ले के लोगों के द्वारा

    इकट्ठा करने का

    इस तरह पेट से ज़्यादा

    समूह की ताक़त बढ़ाने का हिसाब है

    उस आदमी को दौड़कर पकड़ना है

    धक्का देकर पोटली का चावल गिराना जिसका काम है

    मेरा कविता के अलावा क्या कविता का काम है!!

    मुहल्ले के लड़को, आओ

    बहुत ज़रूरी काम है—

    एक-एक कर जिसको जब भी मौक़ा मिले

    अकेले से अच्छा

    किसी को साथ लाना है

    पूरे मोहल्ले को गोल बाज़ार में आना है

    किसान गंज में

    ख़रीददार दुकानों में

    बरसों के मुनाफ़े को तुरंत घाटे में

    मेहनत को मुस्कराहट में

    सोने को बनते हुए ताप बिजलीघर में

    जिसकी चिमनी में उगा मधुमक्खी का छत्ता

    या दिमाग़ में डंक मारने वाले विचारों का शहद-छत्ता

    डंक मारने वाले विचारों को फैलाना है

    ज़रूरी काम है।

    उसकी पहली करतूत के उदाहरण को

    ढूँढ़ते समय

    जैसे गुम हो गई पहले की कविता

    ढूढ़ने के लिए सब कुछ उलट-पुलट बिखरा

    मालूम कहाँ वह गुप्त कविता

    फ़रार कविता

    किस घूरे में फिंकी

    बहुत नुक़सान हुआ

    काम पर जाने में देर हुई

    पत्नी से पहले डाँट-डपट पूछा

    फिर उसके उदास होने पर पछताया

    जबकि वह लिखी गई कविता नहीं

    लिखी जाने वाली कविता होती है।

    कई दरवाज़े वाले गोल कमरे की तरह

    एक विशाल उदाहरण का बहुत छोटा कमरा

    पर इतने दरवाज़े खिड़कियाँ झरोखे

    जिनके खुले होने पर

    यह कमरा शामिल मैदान लगता है—

    खुले दरवाज़े का घेरा

    दस बाई ग्यारह का क्षितिज कमरा

    बिल्कुल शुरू लगता है।

    उदाहरण होने से बचता हुआ

    क्षितिज कमरे के अंदर घुसकर

    उदाहरणों की बैठक में

    कविता लिखने

    मित्रों और दुश्मनों को जवाबदेह हूँ

    इन्हीं के बीच वह ग़रीब का लड़का

    जैसे परिचितों के बीच

    बेफ़िक्र होकर खेलता दिखता है

    वैसे नंग-धड़ंग

    लेकिन प्रतीकों के बाबासूट में

    कहीं जाने को तैयार

    मुझे देखते ही लिपटता है

    कहीं घुमा लाने की ज़िद करता है

    —उदाहरणों की भीड़ से

    पुरानी खटारा साइकिल के उदाहरण पर

    पैडल मारता हुआ

    गुज़रता रहा वर्तमान

    और इसलिए पीछे कैरियर पर बैठा

    ग़रीब लड़के का उदाहरण

    इतना पुराना पड़ गया

    कि उसे लेकर चढ़ाई चढ़नी थी

    या चढ़ाई करनी थी

    क़िला फ़तह करना था

    कुछ सवारियाँ, रिक्शे में पाँच आदमी,

    कहीं आबादी के ऊपर एक सवार

    नहीं! यह छिपकर चढ़ाई का रास्ता नहीं

    यह आम रास्ता है।

    ‘एक दूसरा रास्ता भी है।’

    मैंने कैरियर पर बैठे

    ग़रीब लड़के से कहा

    सामंती इतिहास सदर बाज़ार से

    केवल दो मिनट का है

    यदि साइकिल से जाएँ

    उधर भी परिचित हैं

    वहाँ लालबाग़ है—राजा का महल

    जिसे सारडा सेठ ने ख़रीदा है

    कोकड़ा मारवाड़ी का मंदिर

    एक हलवाई की दुकान

    जहाँ पुराने क़िले का पीर

    रोज़ रात को दो बजे

    दो सोने की गिन्नियाँ देकर

    दो जलेबियाँ खाने आता है

    बड़ा सिरफिरा

    पहुँचा हुआ पीर!!

    हर साल जिसकी मज़ार

    एक बीता बढ़ जाती है

    और शहर अपने अंदर

    एक बीता कम हो जाता है

    हर सेठ उसकी गिन्नियाँ भुनाकर रईस

    और बाक़ी व्यापार ठीक।

    मालूम कब ग़रीब का लड़का

    कैरियर से उतरकर

    हलवाई की दुकान के

    सामने पड़े हुए

    काग़ज़ की चासनी चाटता

    लापता हुआ

    हाय! उसके पीछे मैं लापता!!

    जगह-जगह ठीक होने का समाचार

    मुझे ढूँढ़ता फिरता, मेरी तलाश करता

    मैं उस आदमी को ढूँढ़ता

    जिसकी कुशलता का समाचार मुझे मिलेगा

    आदमी कब कुशलपूर्वक होगा?

    ख़बर मिलते ही देना है जवाब—

    कि यहाँ भी ठीक।

    अपनी तलाशी लेते समय

    जेब में हाथ डालता हूँ

    तो उसमें पहले से घुसा

    कोई और हाथ

    जेब के अंदर

    मुझसे हाथ मिलाता है

    कि मैं गिरफ़्त में!!

    उससे हाथ छुड़ाने की ज़बरदस्त कोशिश में

    उसकी कलाई-घड़ी टूटी ज़रूर

    पर तब भी घंटे, मिनट और सेकंड के नुकीले काँटे

    मेरे हाथ में चुभे, धँसे

    बहुत गहरे, बहुत गहरे बुरा समय बताते हैं

    अंदर और बाहर बूँद-बूँद ख़ून बहता है

    जो एक घटना है—उस हाथ को जेब से बाहर

    निकाल फेंकता हूँ

    तब भी उसकी हथेली से

    उसकी मस्तिष्क और भाग्य-रेखा

    जेब में कुलबुलाती छूट जाती है

    एक-एक कर उनको चुटकी से पकड़

    ज़मीन पर छोड़ता हूँ

    तो सर्र-सर्र भागती हुई लकीरें

    साँप के बिल में पनाह लेती हैं

    कुल मिलाकर जेब से मुट्ठी-भर लकीरें,

    बृहस्पति, चंद्र, पहाड़, शनि निकाल

    हवा में उछालता हूँ

    उसकी बोरी से

    एक मुट्ठी अनाज उठाकर

    एक घूँसा अनाज कहकर

    उसे डराता हूँ

    उससे राज़ीनामे

    और अँगूठे का निशान लगाने से चिढ़ता हूँ।...

    बहुत ज़रूरी काम से

    कुछ सोचकर हड़बड़ी में जाते हुए मुझे देखकर

    एक पोस्टमैन पूछता है?

    क्या आप पहली जनवरी को पैदा हुए?

    आपकी पीठ में फोड़े बहुत निकलते हैं

    और ज़िंदगी के ठीक होने की ख़बर

    जो आपसे कभी नहीं जुड़ी

    उस ख़बर के जुड़ने का

    पैदाइशी निशान आप स्वयं हैं

    तब तो यह गश्ती पत्र आपका भी है—

    अत्र कुशलम् तत्रास्तु

    दुनिया में कुशल है,

    चिंता करें

    मैंने पोस्टमैन से कहा

    —आप पोस्टमैन बूढ़े हैं!

    —नहीं, मैं ब्रिगेडियर बूढ़ा हूँ

    एक जल्दी होने वाले महायुद्ध में

    मेरी टाँग टूटी, मरने से बचा

    केवल एक पैर से

    पैडल मारकर

    आपको ढूँढ़ते पहुँचा

    उदाहरण के लिए मुझे एक कविता में होना था

    संभावित युद्ध में घायल होकर

    मेरे चेहरे का

    पूरा कारोबार बिगड़ा

    मेरी ही नाक फ़ाउंटेनपेन

    सूँघना लिखने के समान

    बिग्रेडियर पोस्टमैन हूँ

    संभावित युद्ध की शांति में

    डाक बाँटने की मेरी ड्यूटी है।...

    उसे जाते हुए मैंने देखा

    उसके कैरियर में पार्सलों के बीच दबा हुआ

    ग़रीब लड़के का उदाहरण

    मुझे देखकर मुस्कुराया

    मुझे रोना आया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता से लंबी कविता (पृष्ठ 43)
    • रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free