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थोड़ा-सा

thoDa sa

राजेश सकलानी

राजेश सकलानी

थोड़ा-सा

राजेश सकलानी

और अधिकराजेश सकलानी

    मैं बहुत थोड़ा हूँ

    थोड़ी-सी मिट्टी

    थोड़ा-सा दरख़्त

    थोड़ा-सा मौसम

    थोड़ी-सी रोटियाँ हूँ

    जो रसदार साग के बिना भी

    ख़ुश रहती हैं

    मैं थोड़ी-सी जगह हूँ

    जितने तक मेरी टाँगें अट जाती हैं

    मैं थोड़ा-सा नमक हूँ

    जो पतेले भर दाल को

    जायकेदार बना सकता है

    मैं थोड़ी-सी आग हूँ

    जो लगातार लगकर

    भगोने भर भात को सिझा सकती है

    मैं थोड़ी-सी शुभकामना हूँ

    जिसे उम्मीद है पूरी दुनिया में

    अमन सकता है

    मैं थोड़ा सा घोड़ा हूँ

    जिसकी पीठ पर बच्चे

    सकपकाए नहीं रहते और मैं

    हुक्के के पानी की तरह गुड़गुड़ करता हूँ

    मैं थोड़ी-सी आवाज़ हूँ

    जो धौंस जमाने वालों की

    ज़ुबान को घबड़ा देती है

    मैं थोड़ा-सा पागल हूँ

    इतना पागल होना तो

    हर जने को चलता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पानी है तो फूटेगा (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : राजेश सकलानी
    • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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