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भाई के कपड़ों में

bhai ke kapDon mein

शुभम श्री

शुभम श्री

भाई के कपड़ों में

शुभम श्री

और अधिकशुभम श्री

    फ़्रॉक खोलकर

    उसकी जींस-टी-शर्ट पहन लेना

    असीम सुख का पर्याय था उन दिनों

    भाई के कपड़े पहनना

    भाई जैसा बनना था

    कोई करिश्मा था शायद

    कि जींस की बकल लगाते ही

    ताक़त का एहसास होता था

    वे ब्रूस ली और जैकी चान के दिन नहीं थे

    तब एक ही सुपरमैन होता था

    जो पिट कर आने पर बदला लेने जाता था

    जो हमारे दुश्मनों की ठीक करता था

    जिसे हमारे क्लास की सारी पढ़ाई आती थी

    वो अद्भुत जीव

    जिससे सैकड़ों धुमक्के खाने के बाद भी

    उसके पीछे घूमते रहने का लोभ ख़त्म नहीं होता था

    एक सुपरसोनिक जेट जैसा सुपरमैन भाई

    बहुत ज़रूरी है ज़िंदगी में

    ताकि उसकी छोटी हो चुकी टी-शर्ट पहनकर

    टशन में घूमा जा सके

    ताकि तमाम दब्बूपन छोड़कर

    किसी का मुँह नोचने की ज़ुर्रत की जा सके...

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभम श्री
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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