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सबक़

sabaq

आमिर हमज़ा

और अधिकआमिर हमज़ा

     

    उस एक मर चुकी नदी के नाम जिसके अदृश्य साहिल पर बैठ यह कविता संभव हुई

    एक

    संभावनाएँ कभी भी ख़त्म नहीं होतीं
    न जीते जी न मरने के बाद।
    यह मैंने—
    पहाड़ से सीखा।

    देह का आवरण लिबास नहीं बल्कि स्पर्श होना चाहिए।
    यह मैंने—
    हवा से सीखा।

    सब्र करना पेड़ से
    मौन रहना समंदर से
    आज़ाद होना आसमान से
    इंतज़ार करना दरीचे से
    और मिट्टी से यह कि—
    दौलत-ओ-शोहरत का गुमाँ कभी भी किसी भी सूरत में अच्छा नहीं होता।

    मनुष्यता मैंने परिंदों से सीखी
    विनम्रता बुद्ध से।
    सादगी मैंने मीर से सीखी
    इनकार-ओ-समर्पण मीरा से।
    बेबाकी मैंने कबीर से सीखी
    तहज़ीब-ए-गंगा-ओ-जमुनी ख़ुसरो से।
    और मंसूर से यह कि—
    इंसानी ज़िंदगी सच और झूठ के बीच खींची गई महज़ एक लकीर है
    इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं।

    दो

    मुहब्बत लफ़्ज़ों में नहीं रूह के किसी कोने में छुपी होती है।
    यह मैंने—
    उस लड़की की आँखों की ख़ामोशी से सीखा
    जिसकी देहरी पर खड़ा चार्ली चैप्लिन वायलिन बजाता है।

    तमाम कलाएँ
    कलाकार की आत्मा के तसव्वुर की पैदाइश होती हैं।
    यह मैंने—
    बहरेपन का शिकार हुए लुडविग वैन बीथोवन की बनाई
    जादुई सिम्फ़नी से सीखा।

    यादें वस्ल की हों या हिज्र की
    मुल्क की हों या घर की
    साथ की हों या विदा की हमेशा बैचेन ही करती हैं
    यादों का धर्म है व्याकुलता।
    यह मैंने—
    अपनी सरज़मीं अपने घर के ग़म में कुहासे में तब्दील हुए उस एक पहाड़ी नियमों के अभ्यस्त चित्रकार से सीखा जिसका क़िस्सा पिछली एक सदी से मेरा दागिस्तान में दर्ज है। बक़ौल क़िस्सा-ए-किताब: दयारे-ग़ैर ने जिसकी आत्मा का क़त्ल कर दिया जिसकी अपनी मातृभाषा अवार का क़त्ल कर दिया और फिर उसने क़त्ल कर दी गई आत्मा और क़त्ल कर दी गई ज़बान से रिसते गाढ़े गर्म ख़ून से कैनवास पर पिंजरे में क़ैद एक पक्षी को चित्रित किया दरअस्ल कहना चाहिए ख़ुद को चित्रित किया और इस तरह ताउम्र वह रटता रहा— मातृभूमि…मातृभूमि…मेरी मातृभूमि।

    तीन

    मृत्यु का ताँगा स्मृतियों की कई-कई गलियों से होकर गुज़रता है।
    यह मैंने—
    अपनी माँ के गुज़र जाने से सीखा।

    ज़िंदगी बर्फ़ पर नक्क़ाशी करने की मानिंद है
    जो हमारी आत्मा में मुसलसल पिघल रही है।
    यह मैंने—
    सड़क पर गजरा बेचने वाली उस एक लड़की से सीखा
    जिसका जिस्म न जाने रोज़-ब-रोज़ कितनी कितनी निगाहों से छलनी होता है।

    इस ज़मीं पर मज़दूर का जीवन शुरू से लेकर आख़िर तक
    मुफ़्लिसी और बेबसी की स्याही से गढ़ा गया एक आख्यान है
    जिसे पढ़ने या सुनने में कभी भी कोई हुक्मरान दिलचस्पी नहीं लेता।
    यह मैंने—
    अलस्सुबह कश्मीरी गेट, महारानी बाग़, आश्रम पर खड़े बीड़ी फूँकते
    चौक-मज़दूरों की मुंतज़िर निगाहों से सीखा।

    चार

    जंग सिर्फ़ बंदूक़ों, मिसाइलों, बमों और टैंकों के बलबूते नहीं लड़ी जाती
    बल्कि वह लड़ी जाती है औरतों की देह और बच्चों के सपनों पर
    दुनिया की तमाम औरतें और बच्चे जंग का निवाला हैं।
    यह मैंने—
    साल उन्नीस सौ इकहत्तर में पाकिस्तानियों द्वारा बार-बार बलत्कृत हुई आल्या बेग़म और उस जैसी हज़ारों-हज़ार अनाम-बहिष्कृत औरतों की सिगरेट से दागी गई योनियों और धारधार हथियार से काट दिए गए उनके स्तनों से फ़व्वारे की शक्ल में बहते ख़ून से सीखा। जंग-ए-वियतनाम में नापाम बम से जान बचाने को सड़क पर निर्वस्त्र दौड़ती चिल्लाती एक नो वर्षीय बच्ची-फान थी किम फुक की अधजली देह से सीखा। नाइजीरिया-बियाफ्रा गृहयुद्ध के दौरान अपनी चौबीस वर्षीय भूखी माँ के सूखे स्तनों से दूध निचोड़ने की जद्दोजहद करते बच्चे की भूख से सीखा। अमेरिकी मिसाइल हमले में अपने दोनों हाथ गवाँ देने वाले इराक़ी बच्चे—अली इस्माइल अब्बास और एक दीगर हवाई हमले में हताहत हुए पाँच साल के सीरियाई बच्चे-ओमरान दाकनीश की कराह से सीखा। हिरोशिमा और नागासाकी में अणुबम हमले की भुक्तभोगी-जिंको क्लाइन, एमिको ओकाडा, तेरुको उएने, सचिको मात्सुओ, शिगेको मात्सुमोतो-की आपबीती से सीखा। चाँद-सितारों से खेलने की उम्र में मौत के कारख़ाने—ऑश्वित्ज़ में गैस चैम्बर में जलाकर राख कर दिए गए असंख्य बच्चों से सीखा। गर्भवती माँओं की छटपटाती कोख से सीखा जिन्हें जंग के साए में पैरों तले कुचला गया और जंग की उन बेवाओं से जिनके हाथों से अभी हिना का रंग उतरने भी न पाया था।
    यह मैंने—
    जंग-ए-लाइबेरिया से सीखा
    जंग-ए-सिएरा लियोन से।
    जंग-ए-क्रोएशिया से सीखा
    जंग-ए-इथियोपिया से।
    जंग-ए-अफ़गानिस्तान से सीखा
    जंग-ए-फ़िलिस्तीन से।

    दुनिया की हर माँ और बच्चे को जंग की नहीं अमन की ज़रूरत है।
    यह मैंने—
    अपनी माँ रेहाना और अपने बड़े भाई ग़ालिब के साथ समंदर में डूबकर मर जाने वाले तीन साल के उस एक मासूम सीरियाई बच्चे एलन कुर्दी की मृत चीख़ से सीखा जिसका फूल-सा जिस्म लहरों के सहारे समंदर की कोख से निकलकर साहिल पर आया था।

    आदमी को गुनाह नहीं अहसास मारता है।
    यह मैंने—
    हिरोशिमा नरसंहार के रोज़ मौसम की जानकारी इकट्ठा करने वाले स्ट्रेट फ्लश विमान के पायलट क्लॉड रॉबर्ट ईथरली और साल उन्नीस सौ तिरानवे के क़हत-ए-सूडान में किसी एक रोज़ एक कंकालमय बच्ची और एक गिद्ध को साथ-साथ तस्वीर में क़ैद करने वाले दक्षिण अफ़्रीक़ी फ़ोटोजर्नलिस्ट केविन कार्टर से सीखा। जिनमें से पहले ने युद्धोपरांत ताज़िंदगी रात-रात भर जागते अपनी खुली आँखों से लोगों को जलते हुए महसूस किया और दूसरे ने एक सवाल से व्यथित हो जवाब में ज़िंदगी नहीं बल्कि मौत चुनी।

    पाँच

    सारे शहर जंगल की देह पर उगते हैं
    शहर जंगल के हत्यारे हैं।
    यह मैंने—
    उन परिंदों की बैचेन पुकार से सीखा
    जो आज भी दरख़्तों के हिज्र में दर-दर भटका करते हैं।

    यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है
    न हमारा दु:ख, न हमारा साथ और न ही हमारा प्यार।
    यह मैंने—
    दरख़्तों से झड़ते
    झड़कर दश्त-ए-ख़िज़ां में तब्दील हो जाने वाले पत्तों से सीखा।

    और आख़िर में यह कि—
    ज़िंदगी में सब कुछ व्यवस्थित ही हो यह कतई ज़रूरी नहीं।
    यह मैंने—
    एक बेतरतीब बहती नदी में डूबते-उतराते उन उदास पत्थरों से सीखा
    जो अपना दुःख कभी किसी से कहने नहीं जाते।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आमिर हमज़ा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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