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पुकारता है मुझको कौन ये...

pukarta hai mujhko kaun ye

निधीश त्यागी

निधीश त्यागी

पुकारता है मुझको कौन ये...

निधीश त्यागी

तुम्हारा मन क्या हुआ जब यह पल

तुम्हारा नाम ले रहा है

वह निकला जा रहा था

उसने तुम्हारा नाम लिया

अपनी धड़कनों के बीच तुम सुन रही हो

तुम्हारा नाम

तुम्हें बुलाता हुआ

तुम उच्चारित हो रही हो

अक्षर-अक्षर-हलंत-चंद्रबिंदुओं-मात्राओं के स्वरमंडल में

हिलोरे भरता हुआ, झोंके की तरह, बादलों की तरह

तुम आँखें बंद करती हो, अपने नाम से

अपने नाम में, आसमान में खुलती हुई, खिड़कियों में

घुलती हुई ध्वनि के बहाव में

मात्राओं के खुरदरे में फरफराती हुई

प्रार्थना में दुहरी होती

नदी की तरह पसरती, सिमटती, पहलू बदलती,

असहाय, असहाय...

तुम्हारा नाम लेकर वह पल तुम्हें आसमान किए दे रहा था, किसी नक्षत्र-मंडल में पूरे ब्रहमांड को अपना हिस्सा बनाते हुए

जुगनू को पकड़ने की कोशिश करती हुई तुम उस पल को पकड़ना चाहती हो अपने हाथ में, जो तुम्हारी कलाई पर बैठ कर फिर निकल जाता है

तुम चाहती हो रुक जाए वह पल

पर कह नहीं पा रही

तुम नाम से कहती हो तुम्हें ले

तुम्हारा नाम तुम्हारी नहीं सुनता

वह एक धुन पकड़ रहा है

इस वक़्त तुम एक स्वरलहरी हो

तीन ताल में द्रुत होती हुई

तुम्हारा नाम तुम्हें लेकर कहीं भीतर लिए जा रहा है

अपने ही अपरिचित में

ज़रूरी नहीं है पलटकर

पुकारना किसी और नाम को

इस पल को साँस लेने दो

अपने नाम से, अपने नाम में

स्रोत :
  • रचनाकार : निधीश त्यागी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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