नहाते हुए रोती हुई औरत
nahate hue roti hui aurat
नदी में डबडब आँखों-से कमल के फूल
या बरसात में फूटती चिंगारियों-सी
नहाते हुए रोती हुई औरत
किस चीज़ के लिए रो रही है औरत
और क्यों चुना उसने नहाने का वक़्त
उसका पति दाढ़ी बना रहा है
और बच्चे आपस में झगड़ रहे हैं
खाने की किसी चीज़ को लेकर
और दूर आम के झुरमुट में कोयल
कूकती जा रही है लगातार
उसके स्वरों के पदों पर
रात का अँधेरा नहीं सुबह का शांत उजाला है
दुख हथेली पर रखकर दिखाने वाली नहीं है यह औरत
रो रही है बेआवाज़ पत्थर और पत्तियों की तरह
वह जानती है पानी बहा ले जाएगा
आँसुओं और सिसकियों को चुपचाप
शिनाख़्त नहीं कर पाएगा कोई भी
वह तक नहीं जो कल्पना में देख सकता होगा
बारिश में टपकती ओस की बूँद
उसके रोने की जड़ें उसी जगह होंगी
जहाँ से फूटती है कविता की पहली कोंपल
फिर भी मैं बता नहीं सकता
उसके रोने का रहस्य
हालाँकि जानते हैं सब
मामूली वजहों से अकेले में
कभी नहीं रोती कोई औरत।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 151)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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