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मैं कितना दूर चला आया

main kitna door chala aaya

सारिका सिंह

सारिका सिंह

मैं कितना दूर चला आया

सारिका सिंह

और अधिकसारिका सिंह

    धूल मेरे चश्में की

    जब बेरहम हो चुकी थी,

    दरमियाँ ज़माने

    और मेरे खड़ी थी,

    रूमाल घिस के मैंने

    आईना चमकाया,

    कैसे नज़र उठाऊँ

    वक्त पीछे छोड़ आया।

    सामने मेरे

    रास्ता नहीं रहा था,

    पिछे मुड़ के देखूँ

    साहस ना हो रहा था,

    कुछ कश्मकश

    थी दिल में,

    मैं डूब भी रहा था

    ज़िंदगी का आलम

    हाथ छोड़ रहा था।

    हिम्मत जुटा के मैंने

    आँखो को समझाया

    सर को थोड़ा घुमाया

    बीता रास्ता दिखाया,

    हैरान मैं खड़ा था

    ख़ुद में ही मैं कहाँ था

    गुज़रा मेरा ज़माना

    क्यू मुझ पे हस रहा था?

    जाने कौन-सी तड़प में

    लालसा, लोभ और

    चंद तारों के भरम में,

    तन्हा निकल के आया

    उम्र को दगा दे आया,

    बचपन का वो लड़कपन

    मनमौजियाँ यौवन की

    सब खाखकर मैं आया

    मैं कितना दूर चला आया।

    मझधार में खड़ा हूँ

    पछतावे में जी रहा हूँ

    वक्त की गिरिफ़्त का मैं

    शिकार बन रहा हूँ,

    खाली हथेली मेरी

    भिक्षा को खोल दी है

    पाने को थोड़ी

    फ़ुरसत जो मुझे

    अभी तक मिली नहीं है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सारिका सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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