अबलक़ सपने, कुम्मैत घोड़ा
ablaq sapne, kummait ghoDa
क्या यह सिर्फ़ मेरा सपना था?
क्या मेरे भीतर एक दिव्य तत्त्व की अनुगूँज थी?
मुझे पता था कि सपने कभी वैसे नहीं होते, जैसे वे प्रतीत होते हैं
लेकिन क्या यह सिर्फ़ मेरा सपना था और
सच नहीं था?
क्या उस सपने में गति नहीं थी?
मैंने तुतलाना सीखा और घोड़े की पीठ पर बिठा दिया।
मैंने बोलने के बजाय हिनहिनाना सीखा और
घोड़े की पीठ पर झंग की सुंदर ज़ीन के नीचे लटकती
दोनों खुरजियों में भर लिए ढेर सारे सपने
मैं अक्सर घोड़े की पीठ पर सो जाता और
दुलकी दौड़ते घोड़े की खुरजी से सपने गिरने लगते
जिनकी याद मुझे कुम्मैत घोड़े की अबलक़ माँ बहुत दिनों तक याद दिलाया करती थी।
घोड़े ने मुझे कई साल रोके रखा स्कूल जाने से
और कहा, तुम मत चढ़ो विकृति के इस सोपान पर
घोड़े ने कई दिन तक मेरे बस्ते को बहुत नाराज़गी के साथ फेंका
घोड़ा मेरे जीवन का हिस्सा था
पता नहीं, भाई था, मामा था या कोई पुराना दोस्त था।
घोड़े ने कहा : देखो, मत जाओ स्कूल
वहाँ वे सब सबसे पहले मुझे तुमसे दूर करेंगे
और फिर माँ से, जिसने तुम्हें गोद में अंडे की तरह रखा है।
घोड़े की सभी आशंकाएँ सही थीं।
मैं जब घोड़े से उतर कर स्कूल गया तो
सबसे पहले मुझे स्कूल की सबसे लंबी और छरहरी लड़की ने पूछा :
ये लड़का है या लड़की?
मैंने कहा : मैं लड़का हूँ, तुम्हें दिखता नहीं?
वह बोली : मरज्याणे, तू नहीं, वो जिससे तू उतरा है!
मैंने उसे पूछा : लड़का क्या होता है?
और सब लड़कियाँ ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ पीटकर हँसने लगीं।
मैं जब भी स्कूल जाता,
लड़कियों में जैसे बोलने की होड़ लग जाती और कहतीं :
लो घोड़ा आ गया, घोड़ा आ गया।
और घोड़े ने रात को मेरे कान में फुसफुसाकर कहा :
देखो, तुम लड़के हो, घोड़ा नहीं।
स्कूल में आदमी नहीं लड़के और लड़कियाँ होती हैं,
जैसे घुड़साल में घोड़े और घोड़ियाँ होती हैं।
स्कूल में जिन्हें लोग लड़के और लड़कियाँ कहते हैं
दरअस्ल, वे सब घोड़े और घोड़ियाँ होती हैं।
घोड़ा मेरे जीवन का हिस्सा था,
क्योंकि जिस दुनिया में मेरा कोई दोस्त नहीं था
वहाँ घोड़ा ही मुझसे खेलता और मुझसे रूठता था
घोड़ा ही मेरे लिए घोड़ा बनता था और घोड़ा ही
मेरे सपनों, मेरी प्रार्थनाओं और मेरी उदासियों के अर्थ समझता था
और घोड़ा ही मेरी आँखों से न गिरे आँसुओं में भीगता था
मैं सोता था तो उसके शयनकक्ष की गंध मेरी नींद को गाढ़ा कर देती थी।
एक दिन सुबह जब मैं स्कूल की प्रार्थना-सभा से कक्षा में जा रहा था
मुझसे एक लड़के ने पूछा : तेरी जाति क्या है?
मैंने कहा : ये क्या होती है?
और वह लड़का अपने सब दोस्तों के साथ
ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए गाने लगा : घोड़ा-घोड़ा...।
घोड़े ने जैसे ये सब सुन लिया और
लौटते हुए नहर के किनारे दुलकी चलते हुए मुझसे कहा :
स्कूल में आदमी नहीं, जातियाँ पढ़ती हैं और सबके सब घोड़े-घोड़ियाँ हैं।
घोड़े की पीठ पर अपने सपनों के साथ मैं ख़ुश होता था
कभी हँसता और कभी रोता था
और एक दिन स्कूल में मुझसे एक शिक्षक ने कहा :
तू गरीबड़ा, घोड़ा चढ़ता है
ऐसे कैसे पढ़ता है
मैंने पूछा : ग़रीब क्या होता है?
शिक्षक ज़ोर से हँसा और बोला : घोड़ा!
मैं प्रसन्न हो गया और मुझे लगा कि मुझे ग़रीब होना चाहिए
क्योंकि वह घोड़ा होता है।
मैं घोड़े को चाहता हूँ और घोड़ा मुझे चाहता है।
मैं उसके बिना जीवित नहीं रह सकता और वह मेरे बिना साँस नहीं ले सकता।
मैंने घोड़े के होंठों को अपने गालों और कानों के पास महसूस किया और प्रसन्न हो गया।
मैं अपनी दोनों नन्हीं बाँहों को उसके गले में लटका कर उसकी अयाल पकड़ककर उसकी गर्दन में झूल गया।
घोड़ा दौड़ता रहा और मैं झूमता रहा
मेरी माँ रोती हुई घोड़े के पीछे भागती रही
बचाओ-बचाओ-बचाओ
अचानक रुककर घोड़े ने माँ के ओढ़ने में अपनी गर्दन छुपा ली
और ज़ोर से बैठ गया।
रोती हुई माँ ने बहुत प्रसन्नता से कहा : दोनों बावले।
मैंने पू्छा : बावला क्या होता है?
माँ ने कहा : घोड़ा।
मैं स्कूल के मैदान में खेलता था
कितने ही फूल मेरी भुजाओं में मछलियों की तरह मचलते थे
मेरी कोमल उँगलियाँ उदग्र रहने लगी थीं
और मेरी आँखों को रूप, रस, गंध और यौवन की बाँण पड़ गई थी
मैं अक्सर वासना में नहाता और फिर भी कैशोर्य में शांत बना रहता
लिए अपने हृदय में कितने ही वसंत, हेमंत और शिशिर!
मैं अपनी भावनाओं को कोई शब्द भी नहीं दे पाता था
और जब भी मैं कुछ गाने की कोशिश करता :
ये भी कोई गाना हुआ, न स्वर, न लय और न मिठास
वे सब कहतीं : ऐसे हिनहिनाता है, जैसे घोड़ा।
मेरे सपनों के धुँध भरे घेरों में
कभी सरसों की महक आती और कभी दूब की कोमलता का स्पर्श
कभी लज्जा के फूल खिलते और कभी हो जाता अंतर्मन पर्वतीय निर्जन
कभी अँधेरे में दीप्त होने लगती अपार जगर-मगर
कभी सपनों की धरती पर पाँव धरतीं
नभ को नाप लेने की कोंपलों-सी कामनाएँ
मैं रक्तरंजित सपनों की धरा पर
दौड़ता शिलाएँ फोड़ता
और मेरी लगाम थाम लेता घोड़ा।
आपकी सब आशंकाएँ मेरे बारे में बिलकुल सही हैं
मैं खूँटे तुड़ाकर भागा हुआ घोड़ा हूँ
मेरे अबलक़ सपने कुम्मैत घोड़े की खुरजी में अब भी हैं
मैं अब भी स्कूल देखता हूँ तो हिनहिनाता हूँ
मैं अब भी मंदिर-मसीत के ऊपर से लाँघ जाता हूँ
मैं लड़ाई लड़ रहा हूँ अश्वशालाओं से
क्योंकि मैं किसी की अश्वशाला का घोड़ा नहीं हूँ
आप होंगे कोई ऋषितुल्य मनुष्य
या कुशल करतार तोपची
हाँ, मैं तो घोड़ा हूँ और अक्सर हिनहिनाता हूँ अश्वशालाओं के ख़िलाफ़
लेकिन तुम आदमी हो, फिर भी किसी की घुड़साल में पछाड़ी लगाकर बँधे हो!
- रचनाकार : त्रिभुवन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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