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कवि और कविता

kavi aur kavita

शाम्भवी तिवारी

शाम्भवी तिवारी

कवि और कविता

शाम्भवी तिवारी

और अधिकशाम्भवी तिवारी

    यह एक नर कविता है

    इसमें उपस्थित हैं प्रचुर मात्रा में—

    वीर, रौद्र, भयानक एवं वीभत्स रस

    वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिगत तौर पर

    वैकल्पिक रूप से वितरित किए गए हैं—

    शांत, हास्य एवं भक्ति

    तथा रस की सहजता से निचोड़ ली गई हैं—

    वात्सल्य और करुणा की कपोल-कल्पित विसंगतियाँ

    नर कविता की सप्रसंग व्याख्याएँ

    नहीं हैं व्यक्तिपरक साहित्य अथवा

    अव्यवस्थित अभिव्यक्तियों के बस की बातें

    अपितु नर कविताएँ कहलाती हैं—

    भव्य ऐतिहासिक दुर्गों की भीषण अट्टालिकाएँ,

    पुरातन और प्राचीन के समयबद्ध अटल, अचल बारजे

    जिनकी छाँव में बैठकर किया जा सकता है

    मात्र उनका विस्मययुक्त अवलोकन!

    नर कविताओं को केंद्र में रखकर होते हैं—

    तार्किक एवं घनघोर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

    जिनमें से निकलते हैं—

    ऐतिहासिक दुर्गों के पुरातन बारजों पर कुंडली मारे बैठे निवासी,

    अतिशयोक्ति के चरम पर अधिक ही सौतेला व्यवहार कर सकने वाले सौतेले पिता,

    विवशता में मूर्तिमान हो चुकीं सौंदर्यीकृत माँएँ,

    और ज्ञान की अतुल्य सरस्वती-सी प्रेमिकाएँ!

    यह एक मादा कवि है

    जिसका अपने आपमें स्वतः ही

    साहित्यिक प्रजनन कर सकना प्राकृतिक असंभावना है

    अतः इसकी रचनाएँ मात्र मानी जा सकेंगी

    किसी अतुल्य नर कविता की अतुल्य सरस्वती-सी

    इकलौती प्रेमिका का तुच्छ-सा वरदान

    जिसे पाने हेतु मादाएँ करेंगी एक अद्भुत समागम नृत्य,

    दोहराएँगी निरीह कोयलों के मूक प्रेम आवेदन,

    बनाएँगी घोंसले और सेती बैठेंगी

    शब्दों के नारी-योग्य हो जाने की समयहीन प्रतीक्षा में।

    ऐतिहासिक तौर पर मादा कवि मोम की आधारशिलाएँ हैं

    जिन्हें जलाने पर अवश्य ही निकलेगा करुणा वात्सल्यपूरित लहू

    और जिनसे रोशन होंगे पुरातन के प्राचीन बारजे

    सप्रसंग व्याख्याओं में कुछ भी नहीं मिलेगा मादा कवियों को

    क्योंकि रौद्र, भयानक और वीभत्स मादाएँ बाँझ या विधवा हो जाती हैं,

    अधिक हँसने वाली स्त्रियाँ कहलाती हैं डायनें एवं चुड़ैलें

    और बची हुई अबलाओं एवं बेचारियों पर मात्र लिखी जा सकती हैं आपबीतियाँ!

    मादा कवियों का मनोविज्ञान होना भी एक प्राकृतिक असंभावना है

    क्योंकि साक्षी हैं इतिहास की अट्टालिकाएँ

    कि अधिक सोचने वाली स्त्रियों को ही आते हैं मिर्गी के दौरे।

    अंततः यह नर कविता लिखने की वासना से प्रेरित होकर

    मादा कवियों के शरीरों के रोम-रोम पर

    अलंकारों की तीखी नोकों से टाँकेगी

    सौंदर्य, शृंगार और विवशता के सलमे-सितारे

    जिनमें लपेटकर अपना संपूर्ण अस्तित्व

    हम सभी मादाएँ व्यक्तिपरक साहित्य तथा अव्यवस्थित अभिव्यक्तियों में

    रस की भाँति गुम हो जाएँगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाम्भवी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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